भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अभिनेता / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=अवतार एनगिल
 
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=अन्धे कहार / अवतार एनगिल
+
|संग्रह=अन्धे कहार / अवतार एनगिल; तीन डग कविता / अवतार एनगिल
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}

12:21, 7 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

जब-जब नाटक हुआ
वह व्यक्ति
दूसरों के चेहरे पहनकर
मंच पर गया
भीड़ के प्रति
अपनी उक्ताहट छिपाकर
मगर,होंठों पर मुस्कान लाकर
उसने तालियां बजाते दर्शकों को देखा
झुककर अभिवादन किया
और गदगद हो गया

तिस पर भी
जानता है वह
कि मुखौटों और लिबासों की कैद में
वह कभी खुद नहीं बन पाया
प्रेम का अभिनय दुहराते हुए
उसने प्रेम की गरिमा खो दी

सच्ची उकताहट
 और झूठी मुस्कान के बीच
थरथराता है
बस एक अभिवादन
जानता है अभिनेता
कि जब-जब उसने नाटक किया
दर्शक की आंख से आंसू भर गये
पर जब कभी
उसकी अपनी आंख में
आंसू चमका
तो हर किसी ने कहा :
ना-ट-क करता है
अ-भि-ने-ता ।