भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रिश्ते / आकांक्षा पारे" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आकांक्षा पारे |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> बिना आवाज़ टू…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("रिश्ते / आकांक्षा पारे" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:48, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
बिना आवाज़
टूटते हैं रिश्ते
या
उखड़ जाते हैं
जैसे
धरती का सीना फाड़े
मजबूती से खड़ा
कोई दरख़्त
आंधी से हार कर
छोड़ देता है अपनी जड़े!