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11:57, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
तुम्हें भूलने की कोशिश के साथ
लौटी हूँ इस बार
मगर
तुम्हारी यादें चली आई हैं
सौंधी खुश्बू वाली मिट्टी
साथ चली आती है जैसे
तलवों में चिपक कर
पतलून के मोड़ में
दुबक कर बैठी रेत की तरह
साथ चले आए हैं
तुम्हारे स्मृतियों के मोती।