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"ज़िंदगी ! ऐ ज़िंदगी / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=अहमद फ़राज़
 
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21:18, 11 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

मैं भी चुप हो जाऊँगा बुझती हुई शम्ओं के साथ
और कुछ लम्हे<ref>क्षण</ref> ठहर ! ऐ ज़िंदगी ! ऐ ज़िंदगी !

जब तलक रोशन हैं आँखों के फ़सुर्दा<ref>उदास</ref>ताक़चे<ref>दीवार में बने आले(ताक़)</ref>
नील-गूँ<ref>नीले रंग के, विषयुक्त</ref> होंठों से फूटेगी सदा की रोशनी
जिस्म की गिरती हुई दीवार को थामे हुए
मोम के बुत<ref>मूर्तियाँ </ref> आतिशी<ref>अग्नियुक्त </ref> चेहरे,सुलगती मूरतें<ref>जलती मूर्तियाँ </ref>
मेरी बीनाई<ref> दृष्टि</ref> की ये मख़्लूक़ <ref>संसार,दुनिया </ref> ज़िन्दा है अभी
और कुछ लम्हे<ref>क्षण</ref> ठहर ! ऐ ज़िंदगी !

हो तो जाने दे मिरे लफ़्ज़ों <ref>शब्दों</ref>को मा’नी <ref>अर्थों</ref> से तही<ref>रिक्त</ref>
मेरी तहरीरें, धुएँ की रेंगती परछाइयाँ
जिनके पैकर<ref>आकृति</ref> अपनी आवाज़ों से ख़ाली बे-लहू
मह्व<ref>तल्लीन</ref> हो जाने तो दे यादों से ख़्वाबों की तरह
रुक तो जाएँ आख़िरी साँसों की वहशी<ref>जंगली</ref> आँधियाँ
फिर हटा लेना मिरे माथे से तू भी अपना साथ
मैं भी चुप हो जाऊँगा बुझती हुई शम्ओं के साथ
और कुछ लम्हे ठहर ! ऐ ज़िंदगी !



शब्दार्थ
<references/>