"पैग़ामबर / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
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11:42, 12 नवम्बर 2009 का अवतरण
पैग़ाम्बर<ref>दूत</ref>
मैं कोई किरनों का सौदागर<ref>व्यापारी</ref>नहीं
अपने-अपने दुख की तारीकी<ref>अँधेरा</ref>लिए
तुम आ गए क्यों मेरे पास
ग़म के अंबारों<ref>ढेरों</ref>को काँधे पर धरे
बोझल सलीबों की तरह
आशुफ़्ता-मू <ref>शोकग्रस्त</ref>,अफ़्सुर्दा रू,<ref>उदास चेहरा,</ref>ख़ूनी लिबास
होंठ महरूमे-तकल्लुम <ref>बोलने वंचित</ref>पर सरापा<ref>सर से पाँवों तक</ref>इल्तिमास<ref>प्रार्थना</ref>
इस तमन्ना पर कि तुमको मिल सके
ग़म के अंबारों के बदले
मुस्कुराहट की किरन-जीने की आस
मैं मगर किरनों का सौदागर नहीं
मैं नहीं जोहर-शनास<ref>गुण-पारखी</ref>
सूरते-अंबोहे-दरीयूजा-गराँ<ref>भिखारियों का समुदाय</ref>
सबके दिल हैं क़हक़हों से चूर
लेकिन आँख से आँसू रवाँ<ref>बहते हुए</ref>
सब के सीनों में उम्मीदों<ref>आशाओं </ref>के चरागाँ<ref></ref>दीपक
और चेहरों पर शिकस्तों<ref>पराजय</ref>का धुआँ
ज़िन्दगी सबसे गुरेज़ाँ<ref>भागते हुए</ref>
सू-ए-मक़्तल <ref>वधस्थल की ओर</ref>
सब रवाँ<ref>चलते हुए</ref>
सब नहीफ़ो-नातवाँ<ref>क्षीण व निर्बल</ref>
सब के सब इक दूसरे से हमसफ़र<ref>सहयात्री</ref>
इक-दूसरे से बदगुमाँ<ref>रुष्ट</ref>
सब की आँखों में ख़याले-मर्ग<ref>मृत्यु के विचार </ref>से ख़ौफ़ो-हिरास<ref>भय</ref>
मेरी बातों से मेरी आवाज़ से
तुमने ये जाना कि मैं भी
ले के आया हूँ तुम्हारे वास्ते वो मोजज़े<ref>चमत्कार</ref>
जिनसे भर जाएँगे पल-भर में तुम्हारे
अनगिनत सदियों के ला-तादाद<ref>असंख्य</ref>ज़ख़्म
दम बख़ुद<ref>मौन</ref>
साँसों को ठहराए हुए बेजान -जिस्म
मुंतज़िर<ref>प्रतीक्षारत</ref> हैं क़ुम-ब-इज़्नी<ref>मेरी आज्ञा से ही उठ</ref>की सदा-ए-सहर<ref>प्रात: की पुकार</ref>के
एशिया पैग़म्बरों की सरज़मीं<ref>दूतों और अवतारों की धरती</ref>
और तुम उसके ज़बूँ-क़िस्मत मक़ीं<ref>दुर्भाग्य से रहने वाले</ref>तीरा-जबीं<ref>बदक़िस्मत</ref>
मन्नो-सलवा<ref>मीठा पदार्थ तथा बटेर अर्थात चट्टेपन</ref>के लिए दामन-कुशा<ref>झोली फैलाए हुए</ref>
क़हत-ख़ुर्दा ज़ारो-बीमारो-हज़ीं
सिर्फ़ तक़दीरो-तवक्कुल पर यक़ीं
तुम को शीरीने-तलब की चाह लेकिन बेसतूने-ग़म की सिल को
चीरने का हौसला, यारा नहीं
तुम यदे-बेज़ा<ref>सफ़ेद चमकता हुआ हाथ</ref>के क़ाइल<ref>मानने वाले</ref>
,बाज़ू-ए-फ़रहाद<ref>फ़रहाद की भुजा</ref>की क़ूव्वत<ref>सामर्थ्य</ref>से बहरावर<ref>सौभाग्यशाली</ref>नहीं
तुम कि हो कोहा गिरफ़्ता<ref>ऊँट की कमर पकड़े हुए हुए</ref>...ज़िंदगी से दूर
मुर्दा साहिरों<ref>जादूगरों</ref>की बेनिशाँ<ref>अचिह्नित</ref>क़ब्रों के सज्जादानशीं<ref>सजदा करने वाले,उत्तराधिकारी</ref>
ख़ाकदाँ <ref>खाक डालने के पात्र </ref>की उस गुले-तारीक<ref>रजनीगंधा</ref>का
मैं भी इक पैकर<ref>आकृति</ref>हूँ पैकरगर<ref>आकृतिकार</ref>नहीं
मैं कोई किरनों का सौदागर नहीं
रेत के तपते हुए टीलों पे इस्तादा<ref>सीधे खड़े हुए</ref>हो तुम
साया-ए-अब्रे-रवाँ<ref>चलते हुए बादलों की छाँव</ref>
को देखते रहना तुम्हारा जुज़्बे-दीं<ref>धर्म का अंग</ref>
सात कुलज़म <ref>समुद्र</ref>मौजज़न<ref>तरंगित</ref>चारों तरफ़
और तुम्हारे बख़्त<ref>भाग्य</ref>में शबनम<ref> ओस</ref>नहीं
अपने अपने दुख की बोझल गठरियों को तुमने खोला है कभी?
अपने हमजिन्सों <ref>सजातीय लोगों</ref>
के सीनों को टटोला है कभी?
सब की रूहें<ref>आत्माएँ</ref>गर्स्ना<ref></ref>... सब की मता-ए-दर्द <ref>दुखों की पूँजी</ref>में
दूसरों का ख़ून पीने की हवस<ref>लोभ लालच</ref>
एक का दुख दूसरों से कम नहीं
एक का दुख तिश्नगी<ref>प्यास</ref>, बेचारगी<ref>दरिद्रता</ref>
दूसरों का दुख मगर इफ़्राते-मै<ref>मद्य का प्राचुर्य</ref>...दीवानगी<ref>पगलपन</ref>
प्यास और नश्शे का दुख
अपने अंबारों से मिल कर छाँट लो
प्यास और नश्शे का दुख,इक दूसरे में बाँट लो
फिर तुम्हारी ज़िन्दगी शायद न हो
शाकी-ए-अर्शे-बरीं-ओ-रहमते-उल आलमीं<ref>पैगंबर-इस्लाम(हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम),उच्च आसमान और सारे संसार पर कृपा करने वाले अर्थात ईश्वर से शिकायत करने वाले</ref>
मैं कोई किरनों का सौदागर नहीं