"गाँधी / नये सुभाषित / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर
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वसुधा ने हो विकल तुम्हें उत्पन्न किया था। | वसुधा ने हो विकल तुम्हें उत्पन्न किया था। | ||
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+ | कौन कहता है कि बापू शत्रु थे विज्ञान के? | ||
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+ | रेल, मोटर या कि पुष्पक-यान, चाहे जो रचो, पर, | ||
+ | सोच लो, आखिर तुम्हें जाना कहाँ है। | ||
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+ | सत्य की संपूर्णता देती न दिखलाई किसी को, | ||
+ | हम जिसे हैं देखते, वह सत्य का, बस, एक पहलू है। | ||
+ | सत्य का प्रेमी भला तब किस भरोसे पर कहे यह | ||
+ | मैं सही हूँ और सब जन झूठ हैं? | ||
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+ | चलने दो मन में अपार शंकाओं को तुम, | ||
+ | निज मत का कर पक्षपात उनको मत काटो। | ||
+ | क्योंकि कौन हैं सत्य, कौन झूठे विचार हैं, | ||
+ | अब तक इसका भेद न कोई जान सका है। | ||
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+ | सत्य है सापेक्ष्य, कोई भी नहीं यह जानता है, | ||
+ | सत्य का निर्णीत अन्तिम रूप क्या है? इसलिए, | ||
+ | आदमी जब सत्य के पथ पर कदम धरता, | ||
+ | वह उसी दिन से दुराग्रह छोड़ देता है। | ||
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17:09, 21 नवम्बर 2009 का अवतरण
(१)
छिपा दिया है राजनीति ने बापू! तुमको,
लोग समझते यही कि तुम चरखा-तकली हो।
नहीं जानते वे, विकास की पीड़ाओं से
वसुधा ने हो विकल तुम्हें उत्पन्न किया था।
(२)
कौन कहता है कि बापू शत्रु थे विज्ञान के?
वे मनुज से मात्र इतनी बात कहते थे,
रेल, मोटर या कि पुष्पक-यान, चाहे जो रचो, पर,
सोच लो, आखिर तुम्हें जाना कहाँ है।
(३)
सत्य की संपूर्णता देती न दिखलाई किसी को,
हम जिसे हैं देखते, वह सत्य का, बस, एक पहलू है।
सत्य का प्रेमी भला तब किस भरोसे पर कहे यह
मैं सही हूँ और सब जन झूठ हैं?
(४)
चलने दो मन में अपार शंकाओं को तुम,
निज मत का कर पक्षपात उनको मत काटो।
क्योंकि कौन हैं सत्य, कौन झूठे विचार हैं,
अब तक इसका भेद न कोई जान सका है।
(५)
सत्य है सापेक्ष्य, कोई भी नहीं यह जानता है,
सत्य का निर्णीत अन्तिम रूप क्या है? इसलिए,
आदमी जब सत्य के पथ पर कदम धरता,
वह उसी दिन से दुराग्रह छोड़ देता है।
(६)