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फिर इक अनजानी सूरत ने तेरे दुख के गीत सुने | फिर इक अनजानी सूरत ने तेरे दुख के गीत सुने |
17:39, 25 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
ख़ुदग़रज़<ref>स्वार्थी</ref>
ऐ दिल! अपने दर्द के कारन तू क्या-क्या बेताब<ref>व्याकुल</ref>रहा
दिन के हंगामों<ref>कोलाहल</ref>में डूबा रातों को बेख़्वाब<ref>जागता हुआ</ref> रहा
लेकिन तेरे ज़ख़्म का मरहम तेरे लिए नायाब<ref>दुर्लभ,अप्राप्य</ref> रहा
फिर इक अनजानी सूरत ने तेरे दुख के गीत सुने
अपनी सुन्दरता की की किरनों से चाहत के ख़्वाब<ref>स्वप्न</ref>बुने
ख़ुद काँटॊं की बाढ़ से गुज़री तेरी राहों में फूल चुने
ऐ दिल जिसने तेरी महरूमी <ref>निराशा,वंचितता</ref>के दाग़ को धोया था
आज उसकी आँखें पुरनम<ref>भीगी हुईं</ref>थीं और तू सोच में खोया थ
देख पराए दुख की ख़ातिर<ref>के लिए,कारण</ref>तू भी कभी यूँ रोया था?
शब्दार्थ
<references/>