भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कविता / लाल्टू" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह= }}<poem>जैसे ज़मीन निष्ठुर। अनंत गह…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=लाल्टू | |रचनाकार=लाल्टू | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
− | }}<poem>जैसे ज़मीन निष्ठुर। | + | }} |
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | जैसे ज़मीन निष्ठुर। | ||
अनंत गह्वरों से लहू लुहान लौटते हो और ज़मीन कहती देखो चोटी पर गुलाब। | अनंत गह्वरों से लहू लुहान लौटते हो और ज़मीन कहती देखो चोटी पर गुलाब। | ||
पंक्ति 14: | पंक्ति 17: | ||
निष्ठुर कविता। | निष्ठुर कविता। | ||
तुमने शब्दों की सुरंगें बिछाईं, कविता कहती मैं वेदना, संवेदना, पर नहीं गीतिका। | तुमने शब्दों की सुरंगें बिछाईं, कविता कहती मैं वेदना, संवेदना, पर नहीं गीतिका। | ||
− | शब्द नहीं, शब्दों की निष्ठुरता, | + | शब्द नहीं, शब्दों की निष्ठुरता, उदासीनता । |
+ | </poem> |
13:10, 24 मई 2010 के समय का अवतरण
जैसे ज़मीन निष्ठुर।
अनंत गह्वरों से लहू लुहान लौटते हो और ज़मीन कहती देखो चोटी पर गुलाब।
जैसे हवा निष्ठुर।
सीने को तार-तार कर हवा कहती मैं कवि की कल्पना।
जैसे आस्मान निष्ठुर।
दिन भर उसकी आग पी और आस्मान कहता देखो नीला मेरा प्यार।
निष्ठुर कविता।
तुमने शब्दों की सुरंगें बिछाईं, कविता कहती मैं वेदना, संवेदना, पर नहीं गीतिका।
शब्द नहीं, शब्दों की निष्ठुरता, उदासीनता ।