भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक दिन में कितने दुख / लाल्टू" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह= }} <poem>एक दिन में कितने दुःख मुझे स…)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=  
 
|संग्रह=  
 
}}
 
}}
<poem>एक दिन में कितने दुःख मुझे सहला सकते हैं
+
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 +
एक दिन में कितने दुःख मुझे सहला सकते हैं
 
मैं शहर के व्यस्त चौराहे पर देखता हूँ
 
मैं शहर के व्यस्त चौराहे पर देखता हूँ
 
अदृश्य मानव संतान खेल रहे हैं  
 
अदृश्य मानव संतान खेल रहे हैं  
पंक्ति 33: पंक्ति 35:
 
चलता हूँ निस्तब्ध रात को सड़क पर
 
चलता हूँ निस्तब्ध रात को सड़क पर
 
कवि का जीवन जीते  
 
कवि का जीवन जीते  
बहुत सारे दुःखों को साथ ले जाते हुए।</poem>
+
बहुत सारे दुःखों को साथ ले जाते हुए।
 +
</poem>

13:06, 24 मई 2010 के समय का अवतरण

एक दिन में कितने दुःख मुझे सहला सकते हैं
मैं शहर के व्यस्त चौराहे पर देखता हूँ
अदृश्य मानव संतान खेल रहे हैं
गिर रहे हैं मोपेड स्कूटरों पर पीछे बैठी सुंदर युवतियों पर
चवन्नी अठन्नी के लिए
मैं नहीं देखता कि मेरे ही बच्चे हैं वह
डाँटता हूँ कहता हूँ हटो
नहीं उतरता सड़क पर सरकार से करने गुहार
कि मेरे बच्चों को बचाओ
मैं बीच रात सुनता हूँ यंत्रों में एक नारी की आवाज
अकेली है वह बहुत अकेली
कोई नहीं है दोस्त उसका
कहता हूँ उसे कि मैं हूँ
भरोसा दिलाता हूँ दूसरों की तरफ से
पर वह है कि न रोती हुई भी रोती चली है
इतनी अकेली इतनी सुंदर वह औरत
रात की रानी सी महकती बिलखती वह औरत
औरत का रोना काफी नहीं है
यह जताने रोता है एक मर्द
जवान मर्द रोता है जीवन की निरर्थकता पर कुछ कहते हुए
भरोसा देता हूँ उसे पढ़ता हूँ वाल्ट ह्विटमैन
'आय सेलीब्रेट माईसेल्फ....'

मुग्ध सुनता है वह एक बच्चे के कवि बनने की कहानी
एक पक्षी का रोना एक प्रेमी का बिछुड़ना
पढ़ते हुए मेरी आँखों से बहते हैं आँसू
हल्की फिसफिसाहट में शुक्रिया अदा करता हूँ कविता का
चलता हूँ निस्तब्ध रात को सड़क पर
कवि का जीवन जीते
बहुत सारे दुःखों को साथ ले जाते हुए।