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<poem>जलते भी गये केहते भी गये
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'''रचनाकार् - प्रेम् धवन्'''
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जलते भी गये केहते भी गये
 
आजादि के पर्वाने
 
आजादि के पर्वाने
 
जीना तो उसी का जीना है
 
जीना तो उसी का जीना है

00:45, 29 नवम्बर 2009 का अवतरण

रचनाकार् - प्रेम् धवन्


जलते भी गये केहते भी गये
आजादि के पर्वाने
जीना तो उसी का जीना है
जो मरना वतन् पे जाने

ए वतन् ए वतन्
हमको तेरी कसम्
तेरी राहों मे
जाँ तक् लुटा जायेगें

फूल् क्या चीज् है
तेरे कदमो पे हम्
भेंट् अपने सरों की
चढा जायेगें

ए वतन् ए वतन्
हमको तेरी कसम्
तेरी राहों मे
जाँ तक् लुटा जायेगें

फूल् क्या चीज् है
तेरे कदमो पे हम्
भेंट् अपने सरों की
चढा जायेगें

कोई पंजाब् से
कोई महाराशट्र से
कोइ यु पी से है
कोइ बंगाल् से

कोई पंजाब् से
कोई महाराशट्र से
कोइ यु पी से है
कोइ बंगाल् से

तेरी पुजा कि थालि मे
तेरी पुजा कि थालि मे
लाये है हम्
फूल् हर् रंग् के
आज् हर् डाल् से

नाम् कुछ् भी सही
पर् लगन् एक् है
ज्योत् से ज्योत् दिल् की
जागा जायेंगे

ए वतन् ए वतन्
हमको तेरी कसम्
तेरी राहों मे
जाँ तक् लुटा जायेगें

तेरी जानिब् उठी
जो कैहर् की नजर्
उस् नजर् को झुका के ही
दम् लेगें हम्

तेरी जानिब् उठी
जो कैहर् की नजर्
उस् नजर् को झुका के ही
दम् लेगें हम्

तेरी धरती पे है जो
कदम् गैर् के
उस् कदम् के निशान् तक्
मिटा देगें हम्
उस् कदम् के निशान् तक्
मिटा देगें हम्

जो भी दीवार् आयेगी अब् सामने
ठोकोरों से उसे हम् गिरा जायेगें
ए वतन् ए वतन्
हमको तेरी कसम्
तेरी राहों मे
जाँ तक् लुटा जायेगें
ए वतन् ए वतन्