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"क़ैदी जो था वो दिल से ख़रीदार हो गया / अमीर मीनाई" के अवतरणों में अंतर
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− | उल्टा वो मेरी | + | उल्टा वो मेरी रुह से बेज़ार हो गया |
− | + | मैं नामे-हूर ले के गुनहगार हो गया | |
− | + | ख़्वाहिश जो रोशनी की हुई मुझको हिज्र में | |
− | जुगनु | + | जुगनु चमक के शम्ए शबे-तार हो गया |
− | + | एहसाँ किसी का इस तने-लागिर से क्या उठे | |
− | सो मन का बोझ | + | सो मन का बोझ साया -ए-दीवार हो गया |
− | बे | + | बे-हीला इस मसीह तलक था गुज़र महाल, |
− | + | क़ासिद समझ कि राह में बीमार हो गया. | |
− | + | जिस राहरव ने राह में देखा तेरा जमाल | |
− | + | आईनादार पुश्ते-ब-दिवार हो गया. | |
− | + | क्योंकर मैं तर्क़े-उल्फ़ते-मिज़्गाँ करुँ अमीर | |
− | मंसूर | + | मंसूर चढ़ के दार पे सरदार हो गया. |
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21:41, 1 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
क़ैदी जो था वो दिल से ख़रीदार हो गया
यूसुफ़ को क़ैदख़ाना भी बाज़ार हो गया
उल्टा वो मेरी रुह से बेज़ार हो गया
मैं नामे-हूर ले के गुनहगार हो गया
ख़्वाहिश जो रोशनी की हुई मुझको हिज्र में
जुगनु चमक के शम्ए शबे-तार हो गया
एहसाँ किसी का इस तने-लागिर से क्या उठे
सो मन का बोझ साया -ए-दीवार हो गया
बे-हीला इस मसीह तलक था गुज़र महाल,
क़ासिद समझ कि राह में बीमार हो गया.
जिस राहरव ने राह में देखा तेरा जमाल
आईनादार पुश्ते-ब-दिवार हो गया.
क्योंकर मैं तर्क़े-उल्फ़ते-मिज़्गाँ करुँ अमीर
मंसूर चढ़ के दार पे सरदार हो गया.