भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"क़ैदी जो था वो दिल से ख़रीदार हो गया / अमीर मीनाई" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (कैदी जो था दिल से खरीदर हो गया / अमीर मीनाई का नाम बदलकर क़ैदी जो था वो दिल से ख़रीदार हो गया / अमीर मी)
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
[[Category:ग़ज़ल]]<poem>कैदी जो था दिल से खरीदर हो गया.
+
[[Category:ग़ज़ल]]
युसुफ को कैद खाना भी बाज़ार हो गया.
+
<poem>
 +
 
 +
क़ैदी जो था वो दिल से ख़रीदार हो गया
 +
यूसुफ़ को क़ैदख़ाना भी बाज़ार हो गया
 
   
 
   
उल्टा वो मेरी रुहसे बेझार हो गया.
+
उल्टा वो मेरी रुह से बेज़ार हो गया
में नामे हूर लेके गुनहगार हो गया.
+
मैं नामे-हूर ले के गुनहगार हो गया
 
   
 
   
ख्वाहिश जो रोशनीकी हुइ मुझको हिज्रमें,
+
ख़्वाहिश जो रोशनी की हुई मुझको हिज्र में
जुगनु चमकके शम्ए शबे तार हो गया.
+
जुगनु चमक के शम्ए शबे-तार हो गया
 
   
 
   
एहसान किसीका एस तने लागिर से क्या उठे
+
एहसाँ किसी का इस तने-लागिर से क्या उठे
सो मन का बोझ सायए दिवार हो गया.
+
सो मन का बोझ साया -ए-दीवार हो गया
 
   
 
   
बे हिला इस मसीह तलक था गुज़र महाल,
+
बे-हीला इस मसीह तलक था गुज़र महाल,
कासिद समज़े कि राहमें बीमार हो गया.
+
क़ासिद समझ कि राह में बीमार हो गया.
 
   
 
   
जिसमें राहरव ने राहमें देखा तेरा जमाल
+
जिस राहरव ने राह में देखा तेरा जमाल
आयना दार पूश्ते बदिवार हो गया.
+
आईनादार पुश्ते-ब-दिवार हो गया.
 
   
 
   
क्यों करें तरके उल्फत मझ्गां करुं अमीर
+
क्योंकर मैं तर्क़े-उल्फ़ते-मिज़्गाँ करुँ अमीर
मंसूर चढके दार पे सरदार हो गया.
+
मंसूर चढ़ के दार पे सरदार हो गया.
 
  </poem>
 
  </poem>

21:41, 1 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण


क़ैदी जो था वो दिल से ख़रीदार हो गया
यूसुफ़ को क़ैदख़ाना भी बाज़ार हो गया
 
उल्टा वो मेरी रुह से बेज़ार हो गया
मैं नामे-हूर ले के गुनहगार हो गया
 
ख़्वाहिश जो रोशनी की हुई मुझको हिज्र में
जुगनु चमक के शम्ए शबे-तार हो गया
 
एहसाँ किसी का इस तने-लागिर से क्या उठे
सो मन का बोझ साया -ए-दीवार हो गया
 
बे-हीला इस मसीह तलक था गुज़र महाल,
क़ासिद समझ कि राह में बीमार हो गया.
 
जिस राहरव ने राह में देखा तेरा जमाल
आईनादार पुश्ते-ब-दिवार हो गया.
 
क्योंकर मैं तर्क़े-उल्फ़ते-मिज़्गाँ करुँ अमीर
मंसूर चढ़ के दार पे सरदार हो गया.