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"नफ़रत का माहौल / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर

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रचनाकाल : 30.04.1991
 
रचनाकाल : 30.04.1991
  
'''शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रविन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।'''
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'''शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि [[कुँअर रवीन्द्र]] के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।'''
 
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02:38, 18 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

मुहब्बत के खिलाफ़
लामबंद तहजीब का मज़ाक जारी है

जारी है फिर भी
फूलों का खिलना
बर्फ़ का गिरना
धूप का हँसना
और अँधेरे का खिलखिलाना

पहाड़ों की रंगत बरकरार है पहले की तरह
पहले की तरह बरकरार है नदियों की रफ़्तार
झरनों की ललकार बरकरार है पहले की तरह

जानवरों की नीद में खलल पड़ रहा है इसके वावजूद
इसके वावजूद बच्चे संजीदा हुए हैं रह-रहकर
औरतें ज़रूरत से ज़्याद ख़ामोश होती गई हैं इसके वावजूद

मुहब्बत के खिलाफ़
लामबंद तहजीब का मज़ाक जारी है


रचनाकाल : 30.04.1991

शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रवीन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।