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"फूल की मनुहार / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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संचित जीवन साध कलंकित न हो, कि उसे लुटा दूँगा; | संचित जीवन साध कलंकित न हो, कि उसे लुटा दूँगा; | ||
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::किन्तु मसल कर सखे! क्रूरता-- | ::किन्तु मसल कर सखे! क्रूरता-- | ||
::की कटुता तू मत जतला; | ::की कटुता तू मत जतला; |
15:53, 12 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
बिन छेड़े, जी खोल सुगन्धों को जग में बिखरा दूँगा;
उषा-राग पर, दे पराग की भेंट, रागिनी गा दूँगा;
छेड़ोगे, तो पत्ती-पत्ती चरणों पर बिखरा दूँगा;
संचित जीवन साध कलंकित न हो, कि उसे लुटा दूँगा;
किन्तु मसल कर सखे! क्रूरता--
की कटुता तू मत जतला;
मेरे पन को दफना कर
अपनापन तू मुझ पर मत ला।
रचनाकाल: नागपुर-१९३४