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"ख़तरा / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर

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रचनाकाल : 1995, विदिशा
 
रचनाकाल : 1995, विदिशा
  
'''शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रविन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।'''
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'''शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि [[कुँअर रवीन्द्र]] के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।'''
 
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02:34, 18 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

चीते की तरह होता ही ख़तरा
गफ़लत का जायजा लेता चुपचाप

दबे पाँव सरकता है
बोलने का मौक़ा दिए बगैर
दबोच लेने को प्रस्तुत

तुम्हारी गफ़लत की गवाही देती
तुम्हारी चीख़
ख़तरे की घाटी में तब्दील हो गयी है अभी-अभी

किसी कहानी में शामिल तुम
शामिल किसी चर्चा में
किसी गप-शप में शामिल
लोगों को ख़तरे से आगाह कर रही हो अब
 

रचनाकाल : 1995, विदिशा

शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रवीन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।