"डेटलाइन पानीपत / गीत चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
छो (डेटलाइन पानीपत /गीत चतुर्वेदी का नाम बदलकर डेटलाइन पानीपत / गीत चतुर्वेदी कर दिया गया है) |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=गीत चतुर्वेदी | |रचनाकार=गीत चतुर्वेदी | ||
+ | |संग्रह=आलाप में गिरह / गीत चतुर्वेदी | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | <poem> | ||
वाटरलू पर लिखी गई हैं कई कविताएँ | वाटरलू पर लिखी गई हैं कई कविताएँ | ||
− | |||
पानीपत पर भी लिखी गई होंगी | पानीपत पर भी लिखी गई होंगी | ||
− | |||
कार्ल सैंडबर्ग ने तो एक कविता में | कार्ल सैंडबर्ग ने तो एक कविता में | ||
− | |||
घास से ढाँप दिया था युद्ध का मैदान | घास से ढाँप दिया था युद्ध का मैदान | ||
− | |||
यहाँ घास नहीं है, यक़ीनन कार्ल सैंडबर्ग भी नहीं | यहाँ घास नहीं है, यक़ीनन कार्ल सैंडबर्ग भी नहीं | ||
− | |||
किसी न किसी को तो दुख होगा इस बात पर | किसी न किसी को तो दुख होगा इस बात पर | ||
− | |||
कुछ युद्ध याद रखे जाते हैं लंबे समय तक | कुछ युद्ध याद रखे जाते हैं लंबे समय तक | ||
− | |||
कई उत्सव भुला दिए जाते हैं अगली सुबह | कई उत्सव भुला दिए जाते हैं अगली सुबह | ||
− | |||
मुझे पता नहीं | मुझे पता नहीं | ||
− | |||
पुरातत्ववेत्ताओं को इसमें कोई रुचि होगी | पुरातत्ववेत्ताओं को इसमें कोई रुचि होगी | ||
− | |||
कि खोदा जाए यहाँ का कोई टीला | कि खोदा जाए यहाँ का कोई टीला | ||
− | |||
किसी कंकाल को ढूंढ़ा जाए और पूछा जाए जबरन | किसी कंकाल को ढूंढ़ा जाए और पूछा जाए जबरन | ||
− | |||
तुम्हारे जमाने में घी कितने पैसे किलो था | तुम्हारे जमाने में घी कितने पैसे किलो था | ||
− | |||
कितने में मिल जाती थी एक तेज़धार तलवार | कितने में मिल जाती थी एक तेज़धार तलवार | ||
− | |||
कुछ लड़ाइयाँ दिखती नहीं | कुछ लड़ाइयाँ दिखती नहीं | ||
− | |||
कुछ लोग होते हैं आसपास पर दिखते नहीं | कुछ लोग होते हैं आसपास पर दिखते नहीं | ||
− | |||
कुछ हथियारों में होती ही नहीं धार | कुछ हथियारों में होती ही नहीं धार | ||
− | |||
कुछ लोग शक्ल से ही बेहद दब्बू नजर आते हैं | कुछ लोग शक्ल से ही बेहद दब्बू नजर आते हैं | ||
− | |||
जो लोग मार रहे थे उन्हें नहीं दिखते थे मरने वाले | जो लोग मार रहे थे उन्हें नहीं दिखते थे मरने वाले | ||
− | |||
हुकुम की पट्टियाँ थीं चारों ओर निगल जाती हैं रोशनी को | हुकुम की पट्टियाँ थीं चारों ओर निगल जाती हैं रोशनी को | ||
− | |||
युद्ध के लिए अब जरूरी नहीं रहे मैदान | युद्ध के लिए अब जरूरी नहीं रहे मैदान | ||
− | |||
गली, नुक्कड़ और मुहल्लों का विस्तार हो गया है | गली, नुक्कड़ और मुहल्लों का विस्तार हो गया है | ||
− | |||
कोई अचरज नहीं | कोई अचरज नहीं | ||
− | |||
बिल्डिंग के नीचे लोग घूम रहे हों लेकर हथियार | बिल्डिंग के नीचे लोग घूम रहे हों लेकर हथियार | ||
− | |||
कोई अचरज नहीं | कोई अचरज नहीं | ||
− | |||
दरवाजा तोड़कर घर में घुस आएँ लोग | दरवाजा तोड़कर घर में घुस आएँ लोग | ||
− | |||
कुछ लोग हैं जो जिए जाते हैं | कुछ लोग हैं जो जिए जाते हैं | ||
− | |||
उन्हें नहीं पता होता जिए जाने का मतलब | उन्हें नहीं पता होता जिए जाने का मतलब | ||
− | |||
कुछ लोग हैं जो बिल्कुल नहीं जानते | कुछ लोग हैं जो बिल्कुल नहीं जानते | ||
− | |||
एक इंसान के लिए मौत का मतलब | एक इंसान के लिए मौत का मतलब | ||
− | |||
घास नहीं ढाँप सकती इस मैदान को | घास नहीं ढाँप सकती इस मैदान को | ||
− | |||
घास भी जानती है | घास भी जानती है | ||
− | |||
हरियाली पानी से आती है, ख़ून से नहीं | हरियाली पानी से आती है, ख़ून से नहीं | ||
− | |||
युद्ध का मैदान अब पर्यटनस्थल है | युद्ध का मैदान अब पर्यटनस्थल है | ||
− | |||
कुछ लोग घर से बनाकर लाते हैं खाना | कुछ लोग घर से बनाकर लाते हैं खाना | ||
− | |||
यहाँ अखबारों पर रख खाते हैं | यहाँ अखबारों पर रख खाते हैं | ||
− | |||
एक-दूसरे के पीछे दौड़ते हैं बॉल को ठोकर मारते | एक-दूसरे के पीछे दौड़ते हैं बॉल को ठोकर मारते | ||
− | |||
अंताक्षरी गाते-गाते हँसने लगते हैं | अंताक्षरी गाते-गाते हँसने लगते हैं | ||
− | |||
कोई चीख किसी को सुनाई नहीं देती | कोई चीख किसी को सुनाई नहीं देती | ||
− | |||
बच्चे यहाँ झूला झूल रहे हैं | बच्चे यहाँ झूला झूल रहे हैं | ||
− | |||
वे देख लेंगे ज़मीन के नीचे झुककर एक बार | वे देख लेंगे ज़मीन के नीचे झुककर एक बार | ||
− | |||
यकीनन बीमार पड़ जाएंगे | यकीनन बीमार पड़ जाएंगे | ||
+ | </poem> |
22:50, 28 जुलाई 2012 के समय का अवतरण
वाटरलू पर लिखी गई हैं कई कविताएँ
पानीपत पर भी लिखी गई होंगी
कार्ल सैंडबर्ग ने तो एक कविता में
घास से ढाँप दिया था युद्ध का मैदान
यहाँ घास नहीं है, यक़ीनन कार्ल सैंडबर्ग भी नहीं
किसी न किसी को तो दुख होगा इस बात पर
कुछ युद्ध याद रखे जाते हैं लंबे समय तक
कई उत्सव भुला दिए जाते हैं अगली सुबह
मुझे पता नहीं
पुरातत्ववेत्ताओं को इसमें कोई रुचि होगी
कि खोदा जाए यहाँ का कोई टीला
किसी कंकाल को ढूंढ़ा जाए और पूछा जाए जबरन
तुम्हारे जमाने में घी कितने पैसे किलो था
कितने में मिल जाती थी एक तेज़धार तलवार
कुछ लड़ाइयाँ दिखती नहीं
कुछ लोग होते हैं आसपास पर दिखते नहीं
कुछ हथियारों में होती ही नहीं धार
कुछ लोग शक्ल से ही बेहद दब्बू नजर आते हैं
जो लोग मार रहे थे उन्हें नहीं दिखते थे मरने वाले
हुकुम की पट्टियाँ थीं चारों ओर निगल जाती हैं रोशनी को
युद्ध के लिए अब जरूरी नहीं रहे मैदान
गली, नुक्कड़ और मुहल्लों का विस्तार हो गया है
कोई अचरज नहीं
बिल्डिंग के नीचे लोग घूम रहे हों लेकर हथियार
कोई अचरज नहीं
दरवाजा तोड़कर घर में घुस आएँ लोग
कुछ लोग हैं जो जिए जाते हैं
उन्हें नहीं पता होता जिए जाने का मतलब
कुछ लोग हैं जो बिल्कुल नहीं जानते
एक इंसान के लिए मौत का मतलब
घास नहीं ढाँप सकती इस मैदान को
घास भी जानती है
हरियाली पानी से आती है, ख़ून से नहीं
युद्ध का मैदान अब पर्यटनस्थल है
कुछ लोग घर से बनाकर लाते हैं खाना
यहाँ अखबारों पर रख खाते हैं
एक-दूसरे के पीछे दौड़ते हैं बॉल को ठोकर मारते
अंताक्षरी गाते-गाते हँसने लगते हैं
कोई चीख किसी को सुनाई नहीं देती
बच्चे यहाँ झूला झूल रहे हैं
वे देख लेंगे ज़मीन के नीचे झुककर एक बार
यकीनन बीमार पड़ जाएंगे