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"जीवन की कर्मभूमि / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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जीवन की इस कर्मभूमि में, | जीवन की इस कर्मभूमि में, | ||
ठीक नहीं है बैठे रहना। | ठीक नहीं है बैठे रहना। | ||
बहुत ज़रूरी है जीवन में | बहुत ज़रूरी है जीवन में | ||
सबकी सुनना, अपनी कहना। | सबकी सुनना, अपनी कहना। | ||
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सुख जो पाए हम मुस्काए, | सुख जो पाए हम मुस्काए, | ||
आँसू आए उनको सहना। | आँसू आए उनको सहना। | ||
रुककर पानी सड़ जाता है, | रुककर पानी सड़ जाता है, | ||
नदी सरीखे निशदिन बहना | नदी सरीखे निशदिन बहना | ||
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+ | सपना ही सही ,सजाए रखिए | ||
+ | ज़िन्दगी का भ्रम बनाए रखिए | ||
+ | हसरतें हज़ार हैं, ज़िन्दगी है | ||
+ | कुछ तो उम्मीद बचाए रखिए । | ||
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22:01, 15 अप्रैल 2019 के समय का अवतरण
1
जीवन की इस कर्मभूमि में,
ठीक नहीं है बैठे रहना।
बहुत ज़रूरी है जीवन में
सबकी सुनना, अपनी कहना।
2
सुख जो पाए हम मुस्काए,
आँसू आए उनको सहना।
रुककर पानी सड़ जाता है,
नदी सरीखे निशदिन बहना
3
सपना ही सही ,सजाए रखिए
ज़िन्दगी का भ्रम बनाए रखिए
हसरतें हज़ार हैं, ज़िन्दगी है
कुछ तो उम्मीद बचाए रखिए ।