भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम भी पूछना चाँद से / हरकीरत हकीर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो (तुम भी पूछना चाँद से/ हरकीरत हकीर का नाम बदलकर तुम भी पूछना चाँद से / हरकीरत हकीर कर दिया गया है) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=हरकीरत हकीर | |रचनाकार=हरकीरत हकीर | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
<Poem> | <Poem> | ||
जब तुम | जब तुम |
23:55, 30 दिसम्बर 2009 का अवतरण
जब तुम
लौट जाओगे
मैं पलटूँगी
मौसम के पन्ने
यादों की चिट्ठी से
भर लूँगी
मुठ्ठी में बादल...
कुछ भीगे अक्षर
तपती देह पर रखकर
मैं खोलूँगी
रंगो की चादर...
पूछूँगी उनसे
हवाओं के दोष पर
बहते बादलों का पता
सूरज वाले मंत्र
और स्पर्श के
उन एहसासों को
जो जिंदा होगें
तुम्हारे सीने पर
'ओम' बनकर...
तुम भी पूछना
चाँद से
ताबूतों में बंद
हवाओं ने
कफ़न ओढा़ या नहीं...