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|संग्रह=मृत्यु-बोध / महेन्द्र भटनागर
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स्थिर<br>अनुत्तरित<br>::अड़ा,<br>विरुद्ध बन<br>::खड़ा।<br><br>
पर, नहीं<br>मनुष्य हार मानना,<br>तनिक न ईश कल्पना<br>::बचाव में,<br>सवाल के जवाब में,<br>नहीं, नहीं !<br>रहस्य मृत्यु का<br>निरावरण ... प्रकट<br>अवश्य<br>अवश्य<br>एक दिन !<br/poem>