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|संग्रह=राग-संवेदन / महेन्द्र भटनागर
}}
{{KKCatKavita}}<poem>कोई तो हमें चाहे <br> गाहे-ब-गाहे! <br> निपट सूनी <br> अकेली ज़िन्दगी में, <br> गहरे कूप में बरबस <br> ढकेली ज़िन्दगी में, <br> निष्ठुर घात-वार-प्रहार <br> झेली ज़िन्दगी में, <br> कोई तो हमें चाहे, <br> सराहे! <br> किसी की तो मिले <br> शुभकामना <br> सद्भावना! <br> अभिशाप झुलसे लोक में <br> सर्वत्र छाये शोक में <br> हमदर्द हो <br> कोई <br> कभी तो! <br> तीव्र विद्युन्मय <br> दमित वातावरण में <br> बेतहाशा गूँजती जब <br> मर्मवेधी <br> चीख-आह-कराह, <br> अतिदाह में जलती <br> विधवंसित ज़िन्दगी <br> आबद्व कारागाह! <br> ऐसे तबाही के क्षणों में <br> चाह जगती है कि <br> कोई तो हमें चाहे <br> भले, <br>
गाहे-ब-गाहे!
</poem>