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"आह्वान / जूझते हुए / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर
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− | उस धूर्त के सम्मुख | + | उस धूर्त के सम्मुख |
− | मत रहो खामोश ! | + | मत रहो खामोश ! |
− | अभिव्यक्त कर आक्रोश | + | अभिव्यक्त कर आक्रोश |
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− | पुरज़ोर गरजो ! | + | पुरज़ोर गरजो ! |
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15:47, 1 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
रहो मत मूक,
की नहीं तुमने
कहीं,
कोई चूक।
बोलो बात —
बेलाग
खरी
दो-टूक।
सत्य को
तुमने सदा
सत्य कहकर ही
पुकारा।
इसमें —
है नहीं अपराध
कोई भी
तुम्हारा।
किन्तु
जिसने सत्य को
हठधर्मिता से
झूठ ठहराया,
वास्तविकता की
उपेक्षा की,
वंचना का धर्म
अपनाया —
उस धूर्त के सम्मुख
मत रहो खामोश !
अभिव्यक्त कर आक्रोश
गरजो,
पुरज़ोर गरजो !
अनीति-विरुद्ध
प्रज्ञा-प्रबुद्ध !