भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सिलसिला ये दोस्ती का / अश्वघोष" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
अब परिंदों को मेरा घर घोंसला जैसा लगे
 
अब परिंदों को मेरा घर घोंसला जैसा लगे
  
घंटियों की भाँति जब बजने लगें ख़मोशियाँ
+
घंटियों की भाँति जब बजने लगें ख़ामोशियाँ
घंटियों का शोर क्यों न जलजला जैसा लगे।
+
घंटियों का शोर क्यों न ज़लज़ला जैसा लगे।
  
 
बंद कमरे की उमस में छिपकली को देखकर
 
बंद कमरे की उमस में छिपकली को देखकर
 
ज़िंदगी का ये सफ़र इक हौसला जैसा लगे।
 
ज़िंदगी का ये सफ़र इक हौसला जैसा लगे।
 
</poem>
 
</poem>

23:00, 3 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

सिलसिला ये दोस्ती का हादसा जैसा लगे
फिर तेरा हर लफ़्ज़ मुझको क्यों दुआ जैसा लगे।

बस्तियाँ जिसने जलाई मज़हबों के नाम पर
मज़हबों से शख़्स वो इकदम जुदा जैसा लगे।

इक परिंदा भूल से क्या आ गया था एक दिन
अब परिंदों को मेरा घर घोंसला जैसा लगे

घंटियों की भाँति जब बजने लगें ख़ामोशियाँ
घंटियों का शोर क्यों न ज़लज़ला जैसा लगे।

बंद कमरे की उमस में छिपकली को देखकर
ज़िंदगी का ये सफ़र इक हौसला जैसा लगे।