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Kavita Kosh से
उसकी इच्छा थी, उठा गूँज गर्जन गभीर,
मैं धूमकेतु - सा उगा तिमिर का हॄदय हृदय चीर।
मृत्तिका - तिलक ले कर प्रभु का आदेश मान,
वाणी, पर, अब तक विफल मुझे दे रही खेद,
टकराकर भी सकती न वज्र का हॄदय हृदय भेद।
जिनके हित मैंने कण्ठ फाड़कर किया नाद,