भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कुछ तो कहिये / नईम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
{{KKCatGazal}}
+
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
 
कुछ तो कहिये कि सुने हम भी माजरा क्या है।
 
कुछ तो कहिये कि सुने हम भी माजरा क्या है।

11:50, 21 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

कुछ तो कहिये कि सुने हम भी माजरा क्या है।
जीना दुश्वार तो मरने का आसरा क्या है।

लाखों तूफान आँधियों में जो महफूज रही
बता आये खाके वतन तेरा फलसफा क्या है।

न कोई लब्ज न जुमला जुबाने दिल है वो
कोई हस्सास ही पूछे ‘वाहवा’ क्या है।

जिन्हें नजीर से निस्वत न है ‘राघव’ से लगाव
हमीं बतायें क्या उनको कि ‘आगरा’ क्या है।

चला जो गाँवों-जवारों से हुआ ‘वेगम’ का
हमीं बतायें क्या उनको कि दादरा क्या है ।