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"पिता / मुकेश जैन" के अवतरणों में अंतर
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− | जोह रहे हैं, किसी की | + | जोह रहे हैं, किसी की<br> |
− | जो उन्हें छुए / पढ़े | + | जो उन्हें छुए / पढ़े<br> |
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फ़िल्म देखते हैं. | फ़िल्म देखते हैं. | ||
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00:01, 27 जनवरी 2010 का अवतरण
पिता
पिता, वह पुरानी टूटी
कुर्सी, बैंच और
पंखा जो आवाज करता था जिन्हें
तुमने
मूल्यवान बनाये रखा था आज तक
बे-जान हो गये हैं तुम्हारे बिना.
वे हस्तलिखित शास्त्र जो
तुमने पढ़े थे, बाट
जोह रहे हैं, किसी की
जो उन्हें छुए / पढ़े
उनकी अनुभूति ग्रहण
करे.
पिता, अब एसी है, सौफे
हैं
कंप्युटर
जिसमें हम
फ़िल्म देखते हैं.
रचनाकाल : २४/१०/२००९ (पिता की मृत्यु पर)