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"नासमझ यह मोहन ठकुरी / मोहन ठकुरी" के अवतरणों में अंतर
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20:29, 6 फ़रवरी 2010 का अवतरण
उसके अपने कभी अपने नही हुए
अधूरे सपनों को गले लगाकर
बैठा यह मोहन ठकुरी
गमले के कैकटस जैसा
न फूल सकता है, न फैल सकता है!
उसकी हँसी कृत्रिम है
अव्यक्त व्यथा-वेदनाओं में लिपटकर
बैठा यह मोहन ठकुरी
किसी के मन में माया बनकर रह नही सकता
किसी की आँखों में आँसू बनकर छलक नही सकता !
(अनुवाद : स्वयं )