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"वसंत गीत / गोपाल सिंह नेपाली" के अवतरणों में अंतर
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21:06, 6 फ़रवरी 2010 का अवतरण
ओ मृगनैनी , ओ पिक बैनी ,
तेरे सामने बाँसुरिया झूठी है !
रग-रग में इतना रंग भरा,
कि रंगीन चुनरिया झूठी है !
मुख भी तेरा इतना गोरा,
बिना चाँद का है पूनम !
है दरस-परस इतना शीतल ,
शरीर नहीं है शबनम !
अलकें-पलकें इतनी काली,
घनश्याम बदरिया झूठी है !
रग-रग में इतना रंग भरा,
कि रंगीन चुनरिया झूठी है !
क्या होड़ करें चन्दा तेरी ,
काली सूरत धब्बे वाली !
कहने को जग को भला-बुरा,
तू हंसती और लजाती !
मौसम सच्चा तू सच्ची है,
यह सकल बदरिया झूठी है !
रग-रग में इतना रंग भरा,
कि रंगीन चुनरिया झूठी है !