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"आफत की शोख़ियां हैं / दाग़ देहलवी" के अवतरणों में अंतर
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मेहशर के फितने खेलते हैं जल्वा-गाह में.. | मेहशर के फितने खेलते हैं जल्वा-गाह में.. | ||
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मैं शाद हूँ कि हूँ तो किसी कि निगाह में.. | मैं शाद हूँ कि हूँ तो किसी कि निगाह में.. | ||
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कहता हूं दोड़ दोड़ के कासिद से राह में.. | कहता हूं दोड़ दोड़ के कासिद से राह में.. | ||
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जो टूट कर शरीक हूँ हाल-ए-तबाह में | जो टूट कर शरीक हूँ हाल-ए-तबाह में | ||
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ऐ दाग़ तुम तो बैठ गये एक आह में.... | ऐ दाग़ तुम तो बैठ गये एक आह में.... | ||
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02:02, 27 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
आफत की शोख़ियां है तुम्हारी निगाह में
मेहशर के फितने खेलते हैं जल्वा-गाह में..
वो दुश्मनी से देखते हैं देखते तो हैं
मैं शाद हूँ कि हूँ तो किसी कि निगाह में..
आती है बात बात मुझे याद बार बार
कहता हूं दोड़ दोड़ के कासिद से राह में..
इस तौबा पर है नाज़ मुझे ज़ाहिद इस कदर
जो टूट कर शरीक हूँ हाल-ए-तबाह में
मुश्ताक इस अदा के बहुत दर्दमंद थे
ऐ दाग़ तुम तो बैठ गये एक आह में....