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"प्रकृति की ओर / भरत प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
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− | सुना है- | + | :सुना है- |
− | ममता के स्वभाववश | + | :ममता के स्वभाववश |
− | माता की छाती से | + | :माता की छाती से |
− | झर-झर दूध छलकता है | + | :झर-झर दूध छलकता है |
− | मैं तो अल्हड़ बचपन से | + | :मैं तो अल्हड़ बचपन से |
− | झुकी हुई सांवली घटाओं में | + | :झुकी हुई सांवली घटाओं में |
− | धारासार दूध बरसता हुआ | + | :धारासार दूध बरसता हुआ |
− | देखता चला आ रहा हूँ। | + | :देखता चला आ रहा हूँ। |
− | आत्मविभोर कर देने वाला | + | :आत्मविभोर कर देने वाला |
− | यह विस्मय | + | :यह विस्मय |
− | मुझे प्रकृति के प्रति | + | :मुझे प्रकृति के प्रति |
− | अथाह कृतज्ञता से | + | :अथाह कृतज्ञता से |
− | भर देता है। | + | :भर देता है। |
15:32, 17 फ़रवरी 2010 का अवतरण
- सुना है-
- ममता के स्वभाववश
- माता की छाती से
- झर-झर दूध छलकता है
- मैं तो अल्हड़ बचपन से
- झुकी हुई सांवली घटाओं में
- धारासार दूध बरसता हुआ
- देखता चला आ रहा हूँ।
- आत्मविभोर कर देने वाला
- यह विस्मय
- मुझे प्रकृति के प्रति
- अथाह कृतज्ञता से
- भर देता है।