"दिल मेरा सोज़े-निहां से बेमहाबा जल गया / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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+ | <poem>दिल मेरा सोज़े-निहां<ref>आंतरिक जलन</ref> से बेमहाबा<ref>एकदम</ref> जल गया | ||
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− | दिल | + | दिल में ज़ौक़े<ref>चाह</ref>-वस्लों<ref>मिलन</ref>-यादे-यार तक बाक़ी नहीं |
− | + | आग इस घर को लगी ऐसी कि जो था जल गया | |
− | + | मैं अ़दम<ref>अस्तित्वहीनता</ref> से भी परे हूँ वर्ना ग़ाफ़िल बारहा | |
− | + | मेरी आहे-आतशीं<ref>जलती हुई आह</ref> से बोले-अ़न्क़ा<ref>अ़नक़ा नामक पक्षी का पंख</ref> जल गया | |
− | + | अर्ज़ कीजे जौहरे-अन्देशा<ref>चिन्तन-तत्व</ref> की गर्मी कहाँ | |
− | + | कुछ ख़याल आया था वहशत का कि सेहरा जल गया | |
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− | + | इस चिराग़ां का करूँ क्या, कारफ़र्मा<ref>कार्यकर्ता</ref> जल गया | |
− | + | मैं हूँ और अफ़सुर्दगी<ref>उदासी</ref> की आरज़ू "ग़ालिब" के दिल | |
− | + | देखकर तर्ज़े-तपाके<ref>व्यवहार का ढंग</ref>-अहले-दुनिया जल गया </poem> | |
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05:25, 27 फ़रवरी 2010 का अवतरण
दिल मेरा सोज़े-निहां<ref>आंतरिक जलन</ref> से बेमहाबा<ref>एकदम</ref> जल गया
आतिशे-ख़ामोश<ref>मूक आग</ref> के मानिन्द गोया जल गया <ref></ref>
दिल में ज़ौक़े<ref>चाह</ref>-वस्लों<ref>मिलन</ref>-यादे-यार तक बाक़ी नहीं
आग इस घर को लगी ऐसी कि जो था जल गया
मैं अ़दम<ref>अस्तित्वहीनता</ref> से भी परे हूँ वर्ना ग़ाफ़िल बारहा
मेरी आहे-आतशीं<ref>जलती हुई आह</ref> से बोले-अ़न्क़ा<ref>अ़नक़ा नामक पक्षी का पंख</ref> जल गया
अर्ज़ कीजे जौहरे-अन्देशा<ref>चिन्तन-तत्व</ref> की गर्मी कहाँ
कुछ ख़याल आया था वहशत का कि सेहरा जल गया
दिल नहीं, तुझ को दिखाता वरना दाग़ों की बहार
इस चिराग़ां का करूँ क्या, कारफ़र्मा<ref>कार्यकर्ता</ref> जल गया
मैं हूँ और अफ़सुर्दगी<ref>उदासी</ref> की आरज़ू "ग़ालिब" के दिल
देखकर तर्ज़े-तपाके<ref>व्यवहार का ढंग</ref>-अहले-दुनिया जल गया