भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मैं और बज़्मे-मै से / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) छो (ये न थी हमारी क़िस्मत / ग़ालिब का नाम बदलकर मैं और बज़्मे-मै से / ग़ालिब कर दिया गया है: Two ghazals had same name.) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:38, 27 फ़रवरी 2010 का अवतरण
मैं और बज़्मे-मै<ref>शराब की महफ़िल</ref> से यूं तश्नाकाम<ref>प्यासा</ref> आऊं!
गर मैंने की थी तौबा साक़ी को क्या हुआ था?
है एक तीर जिसमें दोनों छिदे पड़ें हैं
वो दिन गए कि अपने दिल से जिगर जुदा था
दरमान्दगी<ref>दुख</ref> में 'ग़ालिब' कुछ बन पड़े तो जानूं
जब रिश्ता बेगिरह था नाख़ून गिरह-कुशा<ref>गांठ खोलनेवाला</ref> था
शब्दार्थ
<references/>