भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तालाब के ठूंठ / संध्या पेडणेकर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
दिल लगा कर जाना है | दिल लगा कर जाना है | ||
− | अकेले ही | + | अकेले ही आख़िर जीना है |
अकेले आना है | अकेले आना है | ||
अकेले जाना है | अकेले जाना है | ||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
न दुःख के | न दुःख के | ||
न हास के न परिहास के | न हास के न परिहास के | ||
− | तालाब के हैं सब | + | तालाब के हैं सब ठूँठ |
झीनी लहर पर सरकते | झीनी लहर पर सरकते | ||
पास आते और घिसटकर जाते | पास आते और घिसटकर जाते | ||
− | + | उफ़ान नहीं तालाब में | |
पानी भरे लबालब | पानी भरे लबालब | ||
− | तो स्थिर रह कर | + | तो स्थिर रह कर गुज़र जाने देते |
ऊपर ही ऊपर | ऊपर ही ऊपर | ||
डूबते-उतराते | डूबते-उतराते | ||
पंक्ति 25: | पंक्ति 25: | ||
न बिछुड़ने का दुःख | न बिछुड़ने का दुःख | ||
आदमी हैं यहाँ सब | आदमी हैं यहाँ सब | ||
− | तालाब के | + | तालाब के ठूँठ |
</poem> | </poem> |
20:21, 1 मार्च 2010 के समय का अवतरण
दिल लगा कर जाना है
अकेले ही आख़िर जीना है
अकेले आना है
अकेले जाना है
मेले है सब राह के
न सुख के
न दुःख के
न हास के न परिहास के
तालाब के हैं सब ठूँठ
झीनी लहर पर सरकते
पास आते और घिसटकर जाते
उफ़ान नहीं तालाब में
पानी भरे लबालब
तो स्थिर रह कर गुज़र जाने देते
ऊपर ही ऊपर
डूबते-उतराते
न मिलने की आस
न बिछुड़ने का दुःख
आदमी हैं यहाँ सब
तालाब के ठूँठ