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"तालाब के ठूंठ / संध्या पेडणेकर" के अवतरणों में अंतर

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दिल लगा कर जाना है   
 
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न दुःख के  
 
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न हास के न परिहास के  
 
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तालाब के हैं सब ठूंठ
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झीनी लहर पर सरकते  
 
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पास आते और घिसटकर जाते  
 
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उफान नहीं तालाब में  
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पानी भरे लबालब  
 
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तो स्थिर रह कर गुजर जाने देते  
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न बिछुड़ने का दुःख  
 
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आदमी हैं यहाँ सब  
 
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तालाब के ठूंठ
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20:21, 1 मार्च 2010 के समय का अवतरण

दिल लगा कर जाना है
अकेले ही आख़िर जीना है
अकेले आना है
अकेले जाना है
मेले है सब राह के
न सुख के
न दुःख के
न हास के न परिहास के
तालाब के हैं सब ठूँठ
झीनी लहर पर सरकते
पास आते और घिसटकर जाते
उफ़ान नहीं तालाब में
पानी भरे लबालब
तो स्थिर रह कर गुज़र जाने देते
ऊपर ही ऊपर
डूबते-उतराते
न मिलने की आस
न बिछुड़ने का दुःख
आदमी हैं यहाँ सब
तालाब के ठूँठ