"मध्मवर्गीय पत्नी से / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर
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कल समय की व्यस्तताओं से निकालूँगा समय कुछ | कल समय की व्यस्तताओं से निकालूँगा समय कुछ | ||
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फिर भरुँगा खुद तुम्हारी माँग में सिन्दूर | फिर भरुँगा खुद तुम्हारी माँग में सिन्दूर | ||
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मुझको माफ़ करना | मुझको माफ़ करना | ||
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आज तो इस वक्त काफी देर ऑफिस को हुई है | आज तो इस वक्त काफी देर ऑफिस को हुई है | ||
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हाँ जरा सुनना वो मेरी पेंट है न | हाँ जरा सुनना वो मेरी पेंट है न | ||
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वो फटी है जो अकेले पाँयचों पर | वो फटी है जो अकेले पाँयचों पर | ||
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तुम जरा उसमें लगाकर चन्द टाँके | तुम जरा उसमें लगाकर चन्द टाँके | ||
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शर्ट के टूटे बटन भी टाँक देना | शर्ट के टूटे बटन भी टाँक देना | ||
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इस तरह से, जो नई हर कोई आँके | इस तरह से, जो नई हर कोई आँके | ||
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कल थमे वातावरण से, मैं निकालूँगा प्रलय कुछ | कल थमे वातावरण से, मैं निकालूँगा प्रलय कुछ | ||
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ले चलूँगा फिर तुम्हें इस भीड़ से भी दूर | ले चलूँगा फिर तुम्हें इस भीड़ से भी दूर | ||
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मुझको माफ करना | मुझको माफ करना | ||
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आज तो इस वक्त काफी देर, ग्यारह पर सुई है | आज तो इस वक्त काफी देर, ग्यारह पर सुई है | ||
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क्या कहा, है आज पप्पू का जन्मदिन | क्या कहा, है आज पप्पू का जन्मदिन | ||
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तुम सुनो, ये बात पप्पू से न कहना | तुम सुनो, ये बात पप्पू से न कहना | ||
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और दिन भर तुम उसी के पास रहना | और दिन भर तुम उसी के पास रहना | ||
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यदि करे तुमको परेशां, मारना मत | यदि करे तुमको परेशां, मारना मत | ||
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और हाँ, तुम भी कहीं मन हारना मत | और हाँ, तुम भी कहीं मन हारना मत | ||
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कल पराजय के जलधि से, मैं निकालूँगा विजय कुछ | कल पराजय के जलधि से, मैं निकालूँगा विजय कुछ | ||
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फिर मनायेंगे जन्मदिन की खुशी भरपूर | फिर मनायेंगे जन्मदिन की खुशी भरपूर | ||
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मुझको माफ करना | मुझको माफ करना | ||
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आज तो ये जेब भी मेरी फटेपन ने छुई है | आज तो ये जेब भी मेरी फटेपन ने छुई है | ||
− | '''''-- यह रचना [[Dr.Bhawna Kunwar]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है। | + | '''''-- यह रचना [[Dr.Bhawna Kunwar]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।''''' |
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20:50, 25 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
कल समय की व्यस्तताओं से निकालूँगा समय कुछ
फिर भरुँगा खुद तुम्हारी माँग में सिन्दूर
मुझको माफ़ करना
आज तो इस वक्त काफी देर ऑफिस को हुई है
हाँ जरा सुनना वो मेरी पेंट है न
वो फटी है जो अकेले पाँयचों पर
तुम जरा उसमें लगाकर चन्द टाँके
शर्ट के टूटे बटन भी टाँक देना
इस तरह से, जो नई हर कोई आँके
कल थमे वातावरण से, मैं निकालूँगा प्रलय कुछ
ले चलूँगा फिर तुम्हें इस भीड़ से भी दूर
मुझको माफ करना
आज तो इस वक्त काफी देर, ग्यारह पर सुई है
क्या कहा, है आज पप्पू का जन्मदिन
तुम सुनो, ये बात पप्पू से न कहना
और दिन भर तुम उसी के पास रहना
यदि करे तुमको परेशां, मारना मत
और हाँ, तुम भी कहीं मन हारना मत
कल पराजय के जलधि से, मैं निकालूँगा विजय कुछ
फिर मनायेंगे जन्मदिन की खुशी भरपूर
मुझको माफ करना
आज तो ये जेब भी मेरी फटेपन ने छुई है
-- यह रचना Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।