भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साथी हाथ बढ़ाना / साहिर लुधियानवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=साहिर लुधियानवी
 
|रचनाकार=साहिर लुधियानवी
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatGeet}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
साथी हाथ बढ़ाना, साथी हाथ बढ़ाना
 +
एक अकेला थक जायेगा मिल कर बोझ उठाना
 
साथी हाथ बढ़ाना
 
साथी हाथ बढ़ाना
एक अकेला थक जाएगा, मिलकर बोझ उठाना
 
साथी हाथ बढ़ाना।
 
  
हम मेहनत वालों ने जब भी, मिलकर कदम बढ़ाया
+
हम मेहनतवालों ने जब भी मिलकर कदम बढ़ाया  
सागर ने रस्‍ता छोड़ा, परबत ने सीस झुकाया
+
सागर ने रस्ता छोड़ा पर्वत ने शीश झुकाया  
फ़ौलादी हैं सीने अपने, फ़ौलादी हैं बाँहें
+
फ़ौलादी हैं सीने अपने फ़ौलादी हैं बाहें
हम चाहें तो चट्टानों में पैदा कर दें राहें
+
हम चाहें तो पैदा करदें, चट्टानों में राहें,
साथी हाथ बढ़ाना।
+
साथी हाथ बढ़ाना
  
मेहनत अपने लेख की रेखा, मेहनत से क्‍या डरना
+
मेहनत अपनी लेख की रेखा मेहनत से क्या डरना  
कल गैरों की खातिर की, आज अपनी खातिर करना
+
कल गैरों की खातिर की अब अपनी खातिर करना  
अपना दुख भी एक है साथी, अपना सुख भी एक
+
अपना दुख भी एक है साथी अपना सुख भी एक  
अपनी मंज़िल सच की मंज़िल, अपना रास्‍ता नेक
+
अपनी मंजिल सच की मंजिल अपना रस्ता नेक,
साथी हाथ बढ़ाना।
+
साथी हाथ बढ़ाना
  
एक से एक मिले तो कतरा, बन जाता है दरिया
+
एक से एक मिले तो कतरा बन जाता है दरिया  
एक से एक मिले तो ज़र्रा, बन जाता है सेहरा
+
एक से एक मिले तो ज़र्रा बन जाता है सेहरा  
एक से एक मिले तो राई, बन सकती है परबत
+
एक से एक मिले तो राई बन सकती है पर्वत
एक से एक मिले तो इंसां, बस में कर ले किस्‍मत
+
एक से एक मिले तो इन्सान बस में कर ले किस्मत,
साथी हाथ बढ़ाना।
+
साथी हाथ बढ़ाना
 +
 
 +
माटी से हम लाल निकालें मोती लाएँ जल से
 +
जो कुछ इस दुनिया में बना है बना हमारे बल से
 +
कब तक मेहनत के पैरों में ये दौलत की ज़ंज़ीरें
 +
हाथ बढ़ाकर छीन लो अपने सपनों की तस्वीरें,
 +
साथी हाथ बढ़ाना
 
</poem>
 
</poem>

17:37, 24 दिसम्बर 2011 का अवतरण

साथी हाथ बढ़ाना, साथी हाथ बढ़ाना
एक अकेला थक जायेगा मिल कर बोझ उठाना
साथी हाथ बढ़ाना

हम मेहनतवालों ने जब भी मिलकर कदम बढ़ाया
सागर ने रस्ता छोड़ा पर्वत ने शीश झुकाया
फ़ौलादी हैं सीने अपने फ़ौलादी हैं बाहें
हम चाहें तो पैदा करदें, चट्टानों में राहें,
साथी हाथ बढ़ाना

मेहनत अपनी लेख की रेखा मेहनत से क्या डरना
कल गैरों की खातिर की अब अपनी खातिर करना
अपना दुख भी एक है साथी अपना सुख भी एक
अपनी मंजिल सच की मंजिल अपना रस्ता नेक,
साथी हाथ बढ़ाना

एक से एक मिले तो कतरा बन जाता है दरिया
एक से एक मिले तो ज़र्रा बन जाता है सेहरा
एक से एक मिले तो राई बन सकती है पर्वत
एक से एक मिले तो इन्सान बस में कर ले किस्मत,
साथी हाथ बढ़ाना

माटी से हम लाल निकालें मोती लाएँ जल से
जो कुछ इस दुनिया में बना है बना हमारे बल से
कब तक मेहनत के पैरों में ये दौलत की ज़ंज़ीरें
हाथ बढ़ाकर छीन लो अपने सपनों की तस्वीरें,
साथी हाथ बढ़ाना