"समयातीत पूर्ण-9/ कुमार सुरेश" के अवतरणों में अंतर
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तुमने आमूल बदल दिया | तुमने आमूल बदल दिया | ||
जीवन पद्धति को | जीवन पद्धति को | ||
− | कहा इन्द्र पूजा व्यर्थ है | + | कहा इन्द्र-पूजा व्यर्थ है |
बंद करा के इन्द्र पूजा | बंद करा के इन्द्र पूजा | ||
− | + | अपनी रक्षा आप करना सिखाया | |
− | अन्याय और अत्याचार के | + | अन्याय और अत्याचार के विरूद्ध |
तुम्हारा संघर्ष अनवरत जारी रहा | तुम्हारा संघर्ष अनवरत जारी रहा | ||
हर उस शक्ति से संघर्ष किया | हर उस शक्ति से संघर्ष किया | ||
− | जो | + | जो जनविरोधी एवम निरंकुश थी |
चाहे वह मामा कंस हो या क्रूर जरासंध | चाहे वह मामा कंस हो या क्रूर जरासंध | ||
− | तुमने बताया ख़ून के | + | तुमने बताया ख़ून के रिश्तों से बढ़कर |
लोकमंगल है | लोकमंगल है | ||
− | निति वही श्रेष्ट है | + | निति वही श्रेष्ट है जो समाज के बृहद हित में हो |
प्रेम का मूल्य सबसे बढ़कर है | प्रेम का मूल्य सबसे बढ़कर है | ||
− | + | स्त्रियों का सम्मान और स्वतंत्रता | |
प्रथम भारतीय | प्रथम भारतीय | ||
निर्भय वही है जो निर्लिप्त है | निर्भय वही है जो निर्लिप्त है | ||
− | व्यक्तिगत | + | व्यक्तिगत महत्वकांक्षा सर्वप्रथम त्याज्य है |
− | सत्य वह नहीं है जो | + | सत्य वह नहीं है जो हम सुन कर मनन करते है |
− | सत्य वही है जिसका हम | + | सत्य वही है जिसका हम आविष्कार करते हैं |
है परम क्रन्तिकारी | है परम क्रन्तिकारी | ||
हम अल्पग्य आज भी वहीँ खड़े हैं | हम अल्पग्य आज भी वहीँ खड़े हैं | ||
जहाँ तुम्हारे समय थे | जहाँ तुम्हारे समय थे | ||
तुम अपने समय से कितना पहले | तुम अपने समय से कितना पहले | ||
− | + | आए थे ? | |
− | है अग्रगामी | + | है अग्रगामी |
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00:23, 4 अप्रैल 2010 का अवतरण
है क्रांति दृष्टा
तुमने आमूल बदल दिया
जीवन पद्धति को
कहा इन्द्र-पूजा व्यर्थ है
बंद करा के इन्द्र पूजा
अपनी रक्षा आप करना सिखाया
अन्याय और अत्याचार के विरूद्ध
तुम्हारा संघर्ष अनवरत जारी रहा
हर उस शक्ति से संघर्ष किया
जो जनविरोधी एवम निरंकुश थी
चाहे वह मामा कंस हो या क्रूर जरासंध
तुमने बताया ख़ून के रिश्तों से बढ़कर
लोकमंगल है
निति वही श्रेष्ट है जो समाज के बृहद हित में हो
प्रेम का मूल्य सबसे बढ़कर है
स्त्रियों का सम्मान और स्वतंत्रता
प्रथम भारतीय
निर्भय वही है जो निर्लिप्त है
व्यक्तिगत महत्वकांक्षा सर्वप्रथम त्याज्य है
सत्य वह नहीं है जो हम सुन कर मनन करते है
सत्य वही है जिसका हम आविष्कार करते हैं
है परम क्रन्तिकारी
हम अल्पग्य आज भी वहीँ खड़े हैं
जहाँ तुम्हारे समय थे
तुम अपने समय से कितना पहले
आए थे ?
है अग्रगामी