"नाचा / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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− | नचकार | + | {{KKGlobal}} |
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− | नाचा है आज | + | |रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |
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− | दौड़ी आती हैं | + | <Poem> |
− | औरतें, बच्चे और लोग इकट्ठे हैं | + | नचकार आए हैं, नचकार |
− | धारण चौरा के पास | + | आन गाँव के |
− | + | नाचा है आज गाँव में | |
− | आज खूब चलेगी दुकान बाबूलाल की | + | |
− | खूब रचेंगे होंठ सबके पान से | + | उमंग है तन-मन में सबके |
− | खूब फबेगी पान से रचे होंठों पर मदरस-सी बात | + | जल्दी राँध-खाकर भात-साग |
− | + | दौड़ी आती हैं लड़कियाँ | |
− | लड़कों के फिर मजे हैं, खड़े रहेंगे किनारे | + | औरतें, बच्चे और लोग इकट्ठे हैं |
− | एक-दूसरे के कंधों पर हाथ रखे | + | धारण चौरा के पास |
− | + | ||
− | कि अभी | + | आज खूब चलेगी दुकान बाबूलाल की |
− | उनके हाथों से लेने को रूपैया | + | खूब रचेंगे होंठ सबके पान से |
− | + | खूब फबेगी पान से रचे होंठों पर मदरस-सी बात | |
− | और थिरकेगी जैसे दूध मोंगरा की पत्ती | + | |
− | + | लड़कों के फिर मजे हैं, खड़े रहेंगे किनारे | |
− | डोलेगी जैसे पीपल का पत्ता | + | एक-दूसरे के कंधों पर हाथ रखे |
− | लहसेगी जैसे करन की डगाल | + | हँसते-छेड़ते एक-दूसरे को |
− | महकेगी जैसे मगरमस्त का फूल | + | कि अभी आएगी नचकारिन |
− | चमकेगी जैसे बिजली | + | उनके हाथों से लेने को रूपैया |
− | और गाज बनकर गिरेगी सबके मन पर | + | |
− | + | और थिरकेगी जैसे दूध मोंगरा की पत्ती | |
− | जब तक उग न | + | लहराएगी जैसे बरखा की फुहार |
− | फूट न | + | डोलेगी जैसे पीपल का पत्ता |
− | तब तक गैसबत्ती और बिजली का | + | लहसेगी जैसे करन की डगाल |
− | मिला-जुला उजाला रहेगा | + | महकेगी जैसे मगरमस्त का फूल |
− | मिले-जुले मन | + | चमकेगी जैसे बिजली |
− | + | और गाज बनकर गिरेगी सबके मन पर | |
− | उत्सव-सी बीतेगी रात | + | |
− | नाचा है आज | + | जब तक उग न जाए सुकवा |
+ | फूट न जाए पूरब में रक्तिम आलोक | ||
+ | तब तक गैसबत्ती और बिजली का | ||
+ | मिला-जुला उजाला रहेगा | ||
+ | मिले-जुले मन | ||
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+ | उत्सव-सी बीतेगी रात | ||
+ | नाचा है आज गाँव में। | ||
+ | </poem> |
00:53, 1 मई 2010 के समय का अवतरण
नचकार आए हैं, नचकार
आन गाँव के
नाचा है आज गाँव में
उमंग है तन-मन में सबके
जल्दी राँध-खाकर भात-साग
दौड़ी आती हैं लड़कियाँ
औरतें, बच्चे और लोग इकट्ठे हैं
धारण चौरा के पास
आज खूब चलेगी दुकान बाबूलाल की
खूब रचेंगे होंठ सबके पान से
खूब फबेगी पान से रचे होंठों पर मदरस-सी बात
लड़कों के फिर मजे हैं, खड़े रहेंगे किनारे
एक-दूसरे के कंधों पर हाथ रखे
हँसते-छेड़ते एक-दूसरे को
कि अभी आएगी नचकारिन
उनके हाथों से लेने को रूपैया
और थिरकेगी जैसे दूध मोंगरा की पत्ती
लहराएगी जैसे बरखा की फुहार
डोलेगी जैसे पीपल का पत्ता
लहसेगी जैसे करन की डगाल
महकेगी जैसे मगरमस्त का फूल
चमकेगी जैसे बिजली
और गाज बनकर गिरेगी सबके मन पर
जब तक उग न जाए सुकवा
फूट न जाए पूरब में रक्तिम आलोक
तब तक गैसबत्ती और बिजली का
मिला-जुला उजाला रहेगा
मिले-जुले मन
उत्सव-सी बीतेगी रात
नाचा है आज गाँव में।