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"मुलायम चारा / नन्दल हितैषी" के अवतरणों में अंतर

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पुलिस की बैरिक
 
पुलिस की बैरिक
कमरा नम्बर सात.
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कमरा नम्बर सात।
 
कतार में चार सीलिंग फ़ैन
 
कतार में चार सीलिंग फ़ैन
 
चलते हैं फ़र्राटे से
 
चलते हैं फ़र्राटे से
 
कन्ट्रोल नहीं है ’रेगुलेटर’ का कोई
 
कन्ट्रोल नहीं है ’रेगुलेटर’ का कोई
ऐसे ही घिसते हैं, व्यवस्था के पुरजे.
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ऐसे ही घिसते हैं, व्यवस्था के पुरजे।
  
 
रोशनदान में एक जोड़ी कबूतर
 
रोशनदान में एक जोड़ी कबूतर
उनकी गुमसुम आँखें ......
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उनकी गुमसुम आँखें ....
 
चुपचाप या तो गुटरगूँ ऽ ऽ ऽ
 
चुपचाप या तो गुटरगूँ ऽ ऽ ऽ
 
या ओढ़े सन्नाटा पर सन्नाटा
 
या ओढ़े सन्नाटा पर सन्नाटा
मुँह ओरमाये न होने का दायरा ......
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मुँह ओरमाये न होने का दायरा ....
 
कुछ फर्क नहीं पड़ता
 
कुछ फर्क नहीं पड़ता
 
बैरिक में सन्नाटा हो
 
बैरिक में सन्नाटा हो
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बीतरागी कबूतर / रोशनदान के किनारे
 
बीतरागी कबूतर / रोशनदान के किनारे
 
खूजलाता है पंख
 
खूजलाता है पंख
या फैलाकर लेता है अंगड़ाई.
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या फैलाकर लेता है अंगड़ाई।
 
और आते ही कबूतरी छाप लेती है
 
और आते ही कबूतरी छाप लेती है
अपने हिस्से को.
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अपने हिस्से को।
 
लुढ़कता है एक बच्चा,
 
लुढ़कता है एक बच्चा,
 
और फर्श पर औंधे मुँह
 
और फर्श पर औंधे मुँह
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ऐसे उड़ी कबूतरी कि  
 
ऐसे उड़ी कबूतरी कि  
 
डैनों से डैनों की टकराहट
 
डैनों से डैनों की टकराहट
और तोड़ दिया दम.
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और तोड़ दिया दम।
  
 
आँख से आँख मिलाये
 
आँख से आँख मिलाये
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.... और कई दिन बाद
 
.... और कई दिन बाद
 
वही कबूतर
 
वही कबूतर
किसी और से चोंच मिलाये था.
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किसी और से चोंच मिलाये था।
 
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01:56, 2 मई 2010 के समय का अवतरण

पुलिस की बैरिक
कमरा नम्बर सात।
कतार में चार सीलिंग फ़ैन
चलते हैं फ़र्राटे से
कन्ट्रोल नहीं है ’रेगुलेटर’ का कोई
ऐसे ही घिसते हैं, व्यवस्था के पुरजे।

रोशनदान में एक जोड़ी कबूतर
उनकी गुमसुम आँखें ....
चुपचाप या तो गुटरगूँ ऽ ऽ ऽ
या ओढ़े सन्नाटा पर सन्नाटा
मुँह ओरमाये न होने का दायरा ....
कुछ फर्क नहीं पड़ता
बैरिक में सन्नाटा हो
या हल्ला गुल्ला
’छिनरी-बुजरी’ हो
या खैनी की थपथपाहट ......
मुलायम लाल चोंच / दो बच्चे
कुछ कहते हैं अपने पिता से.
बीतरागी कबूतर / रोशनदान के किनारे
खूजलाता है पंख
या फैलाकर लेता है अंगड़ाई।
और आते ही कबूतरी छाप लेती है
अपने हिस्से को।
लुढ़कता है एक बच्चा,
और फर्श पर औंधे मुँह
’राम- राम सत्य’
चि्हुँक उठा गलमोछिया सिपाही
’मुलायम चारा’
ऐसे उड़ी कबूतरी कि
डैनों से डैनों की टकराहट
और तोड़ दिया दम।

आँख से आँख मिलाये
सिल बट्टा धोता सिपाही
उलरता है
..... और सूँघता है / ’मीट’ मसाला ....
.... और कई दिन बाद
वही कबूतर
किसी और से चोंच मिलाये था।