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− | <poem>1. वन्दना
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− | शारदे आज यह वर दे
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− | नैनों से भी तीखीतर हो
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− | शिशुओं सी सर्वथा निडर हो
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− | व्यंग-विनोद- हास का घर हो
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− | तुझसी ही हे देवि अमर हो
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− | इस निब-वालीको मैं जैसा चाहूँ -- वैसा कर दे
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− | इसमें रंग भरा हो काला
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− | किन्तु जगत में करे उजाला
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− | जहाँ बनज हो रोनेवाला
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− | वहाँ गिरे यह बनकर पाला
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− | फाड़े यह पाखण्ड -- दंभके ताने हुए जो परदे
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− | जैसी टेढ़ी अलकें काली
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− | मानों ऐंठी कोई ब्याली
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− | हो यह टेढ़े शब्दों वाली
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− | किन्तु नहीं हो विष की प्याली
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− | इससे सुधा-बूँद बरसा अधरों पर सबके धर दे
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− | भरा रहे रत्नाकर इसमें
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− | रसका भर दे सागर इसमें
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− | पाएँ लोग चराचर इसमें
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− | मस्ती के हो आखर इसमें
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− | जग को करदे मादक, इसमें वह मादकता भर दे
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− | चूमे क्षितिज और अंबरको
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− | नक्षत्रों के लोक प्रवरको
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− | करै पराजित यह निर्झर को
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− | छूले मानव के अन्तर को
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− | उड़े कल्पना के समीर पर इसको ऐसा करदे
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− | मूर्ख मनुज की वाह-वाह से
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− | बिना ह्रदयवाली निगाह से
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− | पैसों की स्वादिष्ट चाह से
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− | इन तीनों सागर अथाह से
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− | इक्यावन नम्बरवाली यह पार पारकर कर दे
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− | <poem>
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02:36, 22 मई 2010 के समय का अवतरण