भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"विनती / मन्नन द्विवेदी गजपुरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
‘विनती सुन लो हे भगवान,
+
विनती सुन लो हे भगवान,
 
:::हम सब बालक हैं नादान।।१।।
 
:::हम सब बालक हैं नादान।।१।।
 
विद्या बुद्धि नहीं है पास,
 
विद्या बुद्धि नहीं है पास,

23:58, 16 मई 2010 का अवतरण

विनती सुन लो हे भगवान,
हम सब बालक हैं नादान।।१।।
विद्या बुद्धि नहीं है पास,
हमें बना लो अपना दास।।२।।
पैदा तुमने किया सभी को ,
रुपया पैसा दिया सभी को।।३।।
हाथ जोड़कर खड़े हुए हैं,
पैरो पर हम पड़े हुए हैं।।४।।
बुरे काम से हमें बचाना,
खूब पढ़ाना खूब लिखाना।।५।।
बड़ा बड़ा पद पावैगे हम ,
मिहनत कर दिखलावैगे हम।।६।।
कितना भी बढ़ जावैगे हम,
तुमे नहीं बिसरावैगे हम।।७।।
हमें सहारा देते रहना,
खबर हमारी लेते रहना ।।८।।
लो फिर शीस नवाते हैं हम
विद्या पढ़ने जाते हैं हम।।९।।