भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हे मेरे अमर सुरावाहक / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ("हे मेरे अमर सुरावाहक / सुमित्रानंदन पंत" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
 
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
 
|संग्रह= मधुज्वाल / सुमित्रानंदन पंत
 
|संग्रह= मधुज्वाल / सुमित्रानंदन पंत
}}
+
}}{{KKAnthologyDiwali}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>

18:39, 17 मार्च 2011 के समय का अवतरण

हे मेरे अमर सुरा वाहक,
निज प्रणय ज्वाल सी सुरा लाल
तुम भरो हृदय घट में मादक!
चिर स्नेह हीन मेरा दीपक
दीपित न करोगे तुम जब तक
कैसे पाऊँगा दिव्य झलक?
अधरों पर धर निज मदिराधर
तुम जिसे पिलाते हो क्षण भर
वह तुम पर हो चिर न्योछावर
मधु घट सा उठता छलक छलक!
हे मेरे मधुर सुरा वाहक,
मैं हूँ मधु अधरों का ग्राहक!
ढालो निज पावक दुख-दाहक
मद से हो जाएँ अवश पलक!