भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जब अपनी तुलना करता हूँ मैं कवि तुलसीदास से / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=चंदन की कलम शहद में डुबो-…) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 17: | पंक्ति 17: | ||
एक बार ही उपालम्भमय सुन पत्नी की झिड़कियाँ | एक बार ही उपालम्भमय सुन पत्नी की झिड़कियाँ | ||
कवि ने सब कुछ छोड़, गेरुआ और कमंडल धर लिया | कवि ने सब कुछ छोड़, गेरुआ और कमंडल धर लिया | ||
− | और | + | और यहाँ प्रतिनिमिष बिँधा भी प्रिया-व्यंग्य-विष-बाण में |
− | अस्थि-चरम से लिपटा हूँ | + | अस्थि-चरम से लिपटा हूँ मैं, जूँ न रेंगती कान में |
<poem> | <poem> |
01:07, 20 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
मानस-चतुश्शती की सन्निधि में
जब अपनी तुलना करता हूँ मैं कवि तुलसीदास से
लगता है कुछ दूर नहीं हूँ उनके काव्य-विकास से
. . .
किन्तु एक अंतर छोटा-सा जब आता है ध्यान में
तुलसी और स्वयं में पाता हूँ कितना व्यवधान मैं
एक बार ही उपालम्भमय सुन पत्नी की झिड़कियाँ
कवि ने सब कुछ छोड़, गेरुआ और कमंडल धर लिया
और यहाँ प्रतिनिमिष बिँधा भी प्रिया-व्यंग्य-विष-बाण में
अस्थि-चरम से लिपटा हूँ मैं, जूँ न रेंगती कान में