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"ज़िन्दगी का नमक / निर्मला गर्ग" के अवतरणों में अंतर
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वह औरत मिली थी मुझे | वह औरत मिली थी मुझे | ||
छोटा नागपुर जाते हुए ट्रेन में | छोटा नागपुर जाते हुए ट्रेन में |
21:55, 27 मई 2010 के समय का अवतरण
वह औरत मिली थी मुझे
छोटा नागपुर जाते हुए ट्रेन में
गठरी लिए बैठी थी संडास के पास
फिर और बहुत सारी औरतें मिलीं
पूछती हुई
दर्ज़ करती हैं क्या कविताएँ
हमारे तसलों का ख़ालीपन
जानती हैं क्या
हमारी गठरियों में जो अनाज है
उसके कितने हिस्से में घुन है
कितने में लानत
उनके चेहरों पर
मौसम के जूतों के निशान थे
उनकी ज़िन्दगी का नमक
उड़ा था नमक की तरह
हाट-बाज़ार।