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"नई-नई पोशाकें / निर्मला गर्ग" के अवतरणों में अंतर

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अन्न और रोज़गार का ज़िक्र उसे नहीं भाता
 
अन्न और रोज़गार का ज़िक्र उसे नहीं भाता
 
समता और न्याय गए दिनों की बातें हो गईं
 
समता और न्याय गए दिनों की बातें हो गईं
व्यस्त है नई-नई पोशाकें छांटने   में
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व्यस्त है नई-नई पोशाकें छाँटने   में
 
मेरी कविता इन दिनों
 
मेरी कविता इन दिनों
  

22:26, 27 मई 2010 के समय का अवतरण

   
अन्न और रोज़गार का ज़िक्र उसे नहीं भाता
समता और न्याय गए दिनों की बातें हो गईं
व्यस्त है नई-नई पोशाकें छाँटने में
मेरी कविता इन दिनों


रचनाकाल : 1998