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"गज़ा पट्टी-1 / निर्मला गर्ग" के अवतरणों में अंतर

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आज फिर उद्देलित है  
 
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अरब सागर  
 
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सूअरों कुत्तों की तरह फिर मारे जा रहे फिलिस्तीनी  
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  '''रचनाकाल''' : 2009
 
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23:14, 27 मई 2010 के समय का अवतरण

       
गज़ा पट्टी रक्त से सनी है
खुले पड़े हैं अनगिनत जख़्म

अरब सागर अपनी चौड़ी तर्जनी से बरज़ रहा है
इस्त्राइल को किसी की परवाह नहीं है
काठ का हो गया है
उसका ह्रदय
ताकत के नशे में वह इतिहास को भूल रहा है

अभागे फिलिस्तीनी अपनी मिट्टी से
बेदख़ल किए गए
उनके घर के दरवाज़े
उनके चाँद तारे
सब पर कब्ज़ा कर लिया
दुनियाभर से आए यहूदियों ने
अमेरिका का वरदहस्त सदा रहा इस्त्राइल के कंधे पर

इस्त्राइल के टैंक रौंदते रहे
फिलिस्तीनियों के सीने
उनकी बंदूकें उगलतीं रहीं आग
मक्का के दाने से भुन गए छोटे छोटे शिशु भी
पर टूटे नहीं फिलिस्तीनियों के हौसले

आज़ फिर ख़ामोश है अमेरिका यूरोप
आज फिर उद्देलित है
अरब सागर
सूअरों-कुत्तों की तरह फिर मारे जा रहे फिलिस्तीनी
लाल हो रही रक्त से फिर
गज़ा पट्टी
  

 रचनाकाल : 2009