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"लाओ हे लज्जास्मित प्रेयसि / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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मदिर नयन की, फूल वदन की
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लाओ, हे लज्जास्मित प्रेयसि,
प्रेमी को ही चिर पहचान,
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मदिर लालिमा का घट सुंदर,
मधुर गान का, सुरा पान का
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मधुर प्रणय के मदिरालस में
मौजी ही करता सम्मान!
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आज डुबाओ मेरा अंतर!
:स्वर्गोत्सुक जो, सुरा विमुख जो
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:ज्ञानी, रसिक, विमूढ़ों को जो
:क्षमा करे, उनको भगवान,
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:बंदी कर निज प्रीति पाश में
:प्रेयसि का मुख, मदिरा का सुख
+
:विस्मृत कर देती क्षण भर को,
:प्रणयी के, मद्यप के प्राण!
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:लाओ वह मधु ज्वाल पात्र भर!
 
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21:14, 31 मई 2010 का अवतरण

लाओ, हे लज्जास्मित प्रेयसि,
मदिर लालिमा का घट सुंदर,
मधुर प्रणय के मदिरालस में
आज डुबाओ मेरा अंतर!
ज्ञानी, रसिक, विमूढ़ों को जो
बंदी कर निज प्रीति पाश में
विस्मृत कर देती क्षण भर को,
लाओ वह मधु ज्वाल पात्र भर!