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"इक़रारनामा / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर

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(शीला किणी के लिए)
 
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ये सच है
 
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जब तुम्हारे जिस्म के कपड़े
 
जब तुम्हारे जिस्म के कपड़े
 
 
भरी महफ़िल में छीने जा रहे थे
 
भरी महफ़िल में छीने जा रहे थे
 
 
उस तमाशे का तमाशाई था मैं भी
 
उस तमाशे का तमाशाई था मैं भी
 
 
और मैं चुप था
 
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ये सच है
 
ये सच है
 
 
जब तुम्हारी बेगुनाही को
 
जब तुम्हारी बेगुनाही को
 
 
हमेशा की तरह सूली पे टांगा जा रहा था
 
हमेशा की तरह सूली पे टांगा जा रहा था
 
 
उस अंधेरे में
 
उस अंधेरे में
 
 
तुम्हारी बेजुबानी ने पुकारा था मुझे भी
 
तुम्हारी बेजुबानी ने पुकारा था मुझे भी
 
 
और मैं चुप था
 
और मैं चुप था
 
 
  
 
ये सच है
 
ये सच है
 
 
जब सुलगती रेत पर तुम
 
जब सुलगती रेत पर तुम
 
 
सर बरहना
 
सर बरहना
 
 
अपने बेटे भाइयों को तनहा बैठी रो रही थीं
 
अपने बेटे भाइयों को तनहा बैठी रो रही थीं
 
 
मैं किसी महफ़ूज गोशे में
 
मैं किसी महफ़ूज गोशे में
 
 
तुम्हारी बेबसी का मर्सिया था
 
तुम्हारी बेबसी का मर्सिया था
 
 
और मैं चुप था
 
और मैं चुप था
 
 
  
 
ये सच है
 
ये सच है
 
 
आज भी जब
 
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शेर चीतों से भरी जंगल से टकराती
 
शेर चीतों से भरी जंगल से टकराती
 
 
तुम्हारी चीख़ती साँसें
 
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मुझे आवाज़ देती हैं
 
मुझे आवाज़ देती हैं
 
 
  
 
मेरी इज्ज़त, मेरी शोहरत
 
मेरी इज्ज़त, मेरी शोहरत
 
 
मेरी आराम की आदत
 
मेरी आराम की आदत
 
 
मेरे घर बार की ज़ीनत
 
मेरे घर बार की ज़ीनत
 
 
मेरी चाहत, मेरी वहशत
 
मेरी चाहत, मेरी वहशत
 
 
मेरे बढ़ते हुए क़दमों  को बढ़कर रोक लेती है
 
मेरे बढ़ते हुए क़दमों  को बढ़कर रोक लेती है
 
 
  
 
मैं मुजरिम था
 
मैं मुजरिम था
 
 
मैं मुजरिम हूँ
 
मैं मुजरिम हूँ
 
 
मेरी ख़ामोशी मेरे जुर्म की जिंदा शहादत है
 
मेरी ख़ामोशी मेरे जुर्म की जिंदा शहादत है
 
 
मैं उनके साथ था
 
मैं उनके साथ था
 
 
  
 
जो जुल्म को ईजाद करते हैं
 
जो जुल्म को ईजाद करते हैं
 
 
मैं उनके साथ हूँ
 
मैं उनके साथ हूँ
 
 
जो हँसती गाती बस्तियाँ
 
जो हँसती गाती बस्तियाँ
 
 
बर्बाद करते हैं
 
बर्बाद करते हैं
 
 
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20:04, 13 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण

(शीला किणी के लिए)

ये सच है
जब तुम्हारे जिस्म के कपड़े
भरी महफ़िल में छीने जा रहे थे
उस तमाशे का तमाशाई था मैं भी
और मैं चुप था

ये सच है
जब तुम्हारी बेगुनाही को
हमेशा की तरह सूली पे टांगा जा रहा था
उस अंधेरे में
तुम्हारी बेजुबानी ने पुकारा था मुझे भी
और मैं चुप था

ये सच है
जब सुलगती रेत पर तुम
सर बरहना
अपने बेटे भाइयों को तनहा बैठी रो रही थीं
मैं किसी महफ़ूज गोशे में
तुम्हारी बेबसी का मर्सिया था
और मैं चुप था

ये सच है
आज भी जब
शेर चीतों से भरी जंगल से टकराती
तुम्हारी चीख़ती साँसें
मुझे आवाज़ देती हैं

मेरी इज्ज़त, मेरी शोहरत
मेरी आराम की आदत
मेरे घर बार की ज़ीनत
मेरी चाहत, मेरी वहशत
मेरे बढ़ते हुए क़दमों को बढ़कर रोक लेती है

मैं मुजरिम था
मैं मुजरिम हूँ
मेरी ख़ामोशी मेरे जुर्म की जिंदा शहादत है
मैं उनके साथ था

जो जुल्म को ईजाद करते हैं
मैं उनके साथ हूँ
जो हँसती गाती बस्तियाँ
बर्बाद करते हैं