"हरसूद / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
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अपनी ही नींव | अपनी ही नींव | ||
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खोद रहे हैं वे | खोद रहे हैं वे | ||
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और उसमें जमे अंधरे को ढोकर | और उसमें जमे अंधरे को ढोकर | ||
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ले जा रहे हैं | ले जा रहे हैं | ||
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ट्रैक्टर-ट्रालियों पर | ट्रैक्टर-ट्रालियों पर | ||
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इस अंधेरे को लेकर | इस अंधेरे को लेकर | ||
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कहीं भी जा सकते हैं वे | कहीं भी जा सकते हैं वे | ||
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सिवा अदालत के दरवाज़ों के | सिवा अदालत के दरवाज़ों के | ||
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वहाँ तो पहले से ऐतिहासिक इमारतें ढाहने के | वहाँ तो पहले से ऐतिहासिक इमारतें ढाहने के | ||
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आरोपियों की भीड़ लगी है | आरोपियों की भीड़ लगी है | ||
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ताजमहल के बीस किलोमीटर के घेरे में | ताजमहल के बीस किलोमीटर के घेरे में | ||
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नहीं खड़केंगे पत्ते | नहीं खड़केंगे पत्ते | ||
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बस पर्यटक | बस पर्यटक | ||
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पैसे उगल सकते हैं वहाँ | पैसे उगल सकते हैं वहाँ | ||
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क्या सात सौ सालों का इतिहास | क्या सात सौ सालों का इतिहास | ||
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दर्शनीय नहीं होता | दर्शनीय नहीं होता | ||
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केवल ऐतिहासिक इमारतों पर ही | केवल ऐतिहासिक इमारतों पर ही | ||
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धन की वर्षा करेंगे पर्यटक | धन की वर्षा करेंगे पर्यटक | ||
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ऐतिहासिक स्मृतियों का विनाश देखने | ऐतिहासिक स्मृतियों का विनाश देखने | ||
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पैसे देकर नहीं आएगा कोई | पैसे देकर नहीं आएगा कोई | ||
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कल को कुछ भी जीवत नहीं बचेगा वहाँ | कल को कुछ भी जीवत नहीं बचेगा वहाँ | ||
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अभी शेष दिख रहे | अभी शेष दिख रहे | ||
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मंदिर-मस्जिद भी नहीं | मंदिर-मस्जिद भी नहीं | ||
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सात सौ सालों से | सात सौ सालों से | ||
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किसे सिर नवा रहे थे लोग | किसे सिर नवा रहे थे लोग | ||
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किसे छोड़कर चले जा रहे हैं आज | किसे छोड़कर चले जा रहे हैं आज | ||
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उन सफ़ेद दीवारों से घिरे गर्भगृह में | उन सफ़ेद दीवारों से घिरे गर्भगृह में | ||
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`हम धूनी वहीं रमाएंगे´ गाने वाले | `हम धूनी वहीं रमाएंगे´ गाने वाले | ||
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कहाँ खप गए | कहाँ खप गए | ||
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किस दिशा में जाकर | किस दिशा में जाकर | ||
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लोगों को नहीं | लोगों को नहीं | ||
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मूरतों को तो बचाने निकलें वो। | मूरतों को तो बचाने निकलें वो। | ||
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13:03, 1 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
अपनी ही नींव
खोद रहे हैं वे
और उसमें जमे अंधरे को ढोकर
ले जा रहे हैं
ट्रैक्टर-ट्रालियों पर
इस अंधेरे को लेकर
कहीं भी जा सकते हैं वे
सिवा अदालत के दरवाज़ों के
वहाँ तो पहले से ऐतिहासिक इमारतें ढाहने के
आरोपियों की भीड़ लगी है
ताजमहल के बीस किलोमीटर के घेरे में
नहीं खड़केंगे पत्ते
बस पर्यटक
पैसे उगल सकते हैं वहाँ
क्या सात सौ सालों का इतिहास
दर्शनीय नहीं होता
केवल ऐतिहासिक इमारतों पर ही
धन की वर्षा करेंगे पर्यटक
ऐतिहासिक स्मृतियों का विनाश देखने
पैसे देकर नहीं आएगा कोई
कल को कुछ भी जीवत नहीं बचेगा वहाँ
अभी शेष दिख रहे
मंदिर-मस्जिद भी नहीं
सात सौ सालों से
किसे सिर नवा रहे थे लोग
किसे छोड़कर चले जा रहे हैं आज
उन सफ़ेद दीवारों से घिरे गर्भगृह में
`हम धूनी वहीं रमाएंगे´ गाने वाले
कहाँ खप गए
किस दिशा में जाकर
लोगों को नहीं
मूरतों को तो बचाने निकलें वो।