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आज हर ईंट वहाँ की मुझे बुलाती है | आज हर ईंट वहाँ की मुझे बुलाती है | ||
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02:17, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
कभी वसंत इधर से निकल गया होगा
पलाश-दग्ध अभी तक पुकारता हूँ मैं
चाँद जो छोड़ गया नील गगन को उसका
अदृश्य बिम्ब चतुर्दिक् निहारता हूँ मैं
झनझनाया जहाँ सितार तुम्हारे स्वर का
आज हर ईंट वहाँ की मुझे बुलाती है
उर्वशी लौट गयी स्वर्गपुरी को लेकिन
पुरुरवा मैं कि जिसे नींद नहीं आती है