"माँ के गीत / मदन कश्यप" के अवतरणों में अंतर
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और क्या था माँ के पास | और क्या था माँ के पास |
19:20, 5 जून 2010 का अवतरण
और क्या था माँ के पास
बस एक साँवला चेहरा
उम्मीदों को दुलार से पालने वाली बड़ी-बड़ी आँखें
और ढेर सारे गीत
व्यथा की चट्टान से फूट पड़ता था
हँसी का झरना
जब मेरा नन्हा सिर होता था उसकी गोद में
महल नहीं था माँ के पास
पर गीत थे कोठे-अटारियों के
गीत थे सोने की थाली के
छपपन व्यंजनों के
रेशमी परिधानों के
गीतों में रूठकर चला जाता था मैं नदी के पार
फिर चांदी की नाव लेकर मनाने आते थे पिता
सोने का मुकुट होता था मेरे सिर पर
चंदन की पाटी पर लिखता था मैं मोती से अक्षर
कभी नहीं होते थे मेरे नंगे पाँव गीतों में
गीतों में होती थी मेरी एक पृथ्वी पूरी-की-पूरी
मेरा बिल्कुल अपना एक तारामंडल होता था
लाखों सितारों से जगमगा रही होती थी मेरी आकाशगंगा
मेरा एक सागर होता था
जिसकी असंख्य लहरें सुर में सुर मिलाकर गा रही होती थीं
मेरे सभी किलों के द्वार खुले होते थे
मेरे सारे मंदिरों की घंटियां बज रही होती थीं
गीतों में नहीं कांपते थे मेरे पांव किसी को देखकर
राक्षस को मारकर राजकुमारी से ब्याह कर लेता था मैं
ले आता था ढेर सारा धन रंगून से
जीवन में चाहे हर बार जीतता हो
अत्याचारी कभी नहीं जीत पाता था गीतों में
तीज-त्यौहार से जतसार तक के असंख्य गीत
पसीने की गंध और पिसते आटे की खुशबू से सने गीत
माँ की आँखों में गीतों का महासमुद्र था जैसे
दुःख को भी गा लेती थी माँ
अनुष्ठानों की चोबों पर शामियाने की तरह तना था उसका जीवन
एक-एक अनुष्ठान के लिए कई-कई गीत
और कई-कई अनुष्ठानों के लिए एक ही गीत
गीतों के अद्भुत समुच्चय थे माँ के पास!