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"कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर

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कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए
 
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कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए  
 
कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए  
 
  
 
यहाँ दरख़तों के साये में धूप लगती है
 
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चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए  
 
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए  
 
  
 
न हो कमीज़ तो पाँओं से पेट ढँक लेंगे
 
न हो कमीज़ तो पाँओं से पेट ढँक लेंगे
 
 
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए  
 
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ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही
 
ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही
 
 
कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए  
 
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वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता
 
वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता
 
 
मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिए  
 
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तेरा निज़ाम है सिल दे ज़ुबान शायर की
 
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ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए  
 
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जिएँ तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले
 
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मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिए
 
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11:11, 4 अप्रैल 2011 का अवतरण

कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए
कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए

यहाँ दरख़तों के साये में धूप लगती है
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए

न हो कमीज़ तो पाँओं से पेट ढँक लेंगे
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए

ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही
कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए

वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता
मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिए

तेरा निज़ाम है सिल दे ज़ुबान शायर की
ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए

जिएँ तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले
मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिए