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"खँडहर बचे हुए हैं, इमारत नहीं रही / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर
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खँडहर बचे हुए हैं, इमारत नहीं रही | खँडहर बचे हुए हैं, इमारत नहीं रही | ||
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अच्छा हुआ कि सर पे कोई छत नहीं रही | अच्छा हुआ कि सर पे कोई छत नहीं रही | ||
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कैसी मशालें ले के चले तीरगी में आप | कैसी मशालें ले के चले तीरगी में आप | ||
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जो रोशनी थी वो भी सलामत नहीं रही | जो रोशनी थी वो भी सलामत नहीं रही | ||
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हमने तमाम उम्र अकेले सफ़र किया | हमने तमाम उम्र अकेले सफ़र किया | ||
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हम पर किसी ख़ुदा की इनायत नहीं रही | हम पर किसी ख़ुदा की इनायत नहीं रही | ||
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मेरे चमन में कोई नशेमन नहीं रहा | मेरे चमन में कोई नशेमन नहीं रहा | ||
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या यूँ कहो कि बर्क़ की दहशत नहीं रही | या यूँ कहो कि बर्क़ की दहशत नहीं रही | ||
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हमको पता नहीं था हमें अब पता चला | हमको पता नहीं था हमें अब पता चला | ||
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इस मुल्क में हमारी हक़ूमत नहीं रही | इस मुल्क में हमारी हक़ूमत नहीं रही | ||
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कुछ दोस्तों से वैसे मरासिम नहीं रहे | कुछ दोस्तों से वैसे मरासिम नहीं रहे | ||
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कुछ दुश्मनों से वैसी अदावत नहीं रही | कुछ दुश्मनों से वैसी अदावत नहीं रही | ||
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हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग | हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग | ||
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रो—रो के बात कहने की आदत नहीं रही | रो—रो के बात कहने की आदत नहीं रही | ||
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सीने में ज़िन्दगी के अलामात हैं अभी | सीने में ज़िन्दगी के अलामात हैं अभी | ||
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गो ज़िन्दगी की कोई ज़रूरत नहीं रही | गो ज़िन्दगी की कोई ज़रूरत नहीं रही | ||
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11:18, 4 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
खँडहर बचे हुए हैं, इमारत नहीं रही
अच्छा हुआ कि सर पे कोई छत नहीं रही
कैसी मशालें ले के चले तीरगी में आप
जो रोशनी थी वो भी सलामत नहीं रही
हमने तमाम उम्र अकेले सफ़र किया
हम पर किसी ख़ुदा की इनायत नहीं रही
मेरे चमन में कोई नशेमन नहीं रहा
या यूँ कहो कि बर्क़ की दहशत नहीं रही
हमको पता नहीं था हमें अब पता चला
इस मुल्क में हमारी हक़ूमत नहीं रही
कुछ दोस्तों से वैसे मरासिम नहीं रहे
कुछ दुश्मनों से वैसी अदावत नहीं रही
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग
रो—रो के बात कहने की आदत नहीं रही
सीने में ज़िन्दगी के अलामात हैं अभी
गो ज़िन्दगी की कोई ज़रूरत नहीं रही